Wednesday, July 1, 2009

वैयक्तिक चेतना की अभिव्यक्ति- `आधुनिक ययाति´

-डॉ. मीनूपुरी

वर्तमान युग वैज्ञानिक बैद्विक उन्मेष का युग हैं। विज्ञान तो पुरातन काल में भी था पर वर्तमान में मानव ने उसे एक निश्चित क्रियान्मक रूप दे दिया है। हमारे दैनिक क्रियाकलापों में जन्म से लेकर मरण तक हम विज्ञान के विभिन्न पक्षों से गुजरते हैं। वर्तमान में विज्ञान हमारे भांति-भांति प्रकार के कौतूहलों को तृप्त करने में सक्षम हो गया है। विज्ञान के अद्भुत प्रयोगों से प्राप्त चमत्कारिक गातिविधियों ने हमारे कवि लेखक व उपन्यासकारों की कल्पना को नई-नई संचेतनाएं दीं और उन्होंने अद्भुत रचनाओं का सृजन किया।
प्रसिध्द वैज्ञानिक आइस्टाइन की मान्यता है ''वैज्ञानिक आविष्कारों के बीज स्वत: स्फूरित क्षणों में अचानक एक विद्युत की कौंध की भांति वैज्ञानिक के मस्तिष्क में उद्भासित हुआ करते हैं। इस दृष्टि से कवि की काव्य चेतना और वैज्ञानिक की आविष्कार चेतना दोनों बहुत निकट हो जाती है।'' ऐसा ही कुछ हमें ''अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कार'' से सम्माानित एवं ललित शैली में पहली वार लिखे डॉ. राजिव रंजन उपाध्याय के विज्ञान कथा संग्रह ''आधुनिक ययाति'' में अनुभव होता है।
प्रस्तुत संग्रह में डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय ने एक कवि व वैज्ञानिक दोनाें का समावेश कर नवीन ही रीति को जन्म दिया है। स्वयं की अनुभूति अर्थात आत्माभिव्यक्ति के वर्णन का स्त्रोत है 'आधुनिक ययाति'। प्रस्तुत संग्रह में वैयक्तिक चेतना की अभिव्यक्ति एक प्रमुख विशेषता बन कर आयी है। जहाँ डॉ. उपाध्याय ने एक ओर शुध्द वैज्ञानिकता के आधार पर ब्रह्माण्ड की स्थिति, जीवन की सम्भावनाओं आदि पर एक प्रश्न रेखांकित किया है वहीं दूसरी ओर पात्रों की भाव अनुभूतियों को साहित्यिक जामा पहना विभिन्न काव्य शौलियों का प्रयोग किया हैं। जहाँ एक ओर संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग (लावण्यमयी भारतीय भौतिकविद विषाशा का स्मरण्ा हो गया) वहीं दूसरी तरफ सूचना पैनेल का मानवीकरण किया गया है2 ( अपने कक्ष के सूचना पैनेल पर दृष्टिपात किया। वह अन्तरिक्ष की अनन्य शान्ति की भांति ही निश्चेष्ट था, मौन था) डॉ. राजीवरंजन उपाध्याय ने अपराजित2 कथा में वैज्ञानिक सम्मत दृष्टिकोण का अत्यन्त ही काव्यात्मक शैली में चित्रण किया है। वृष नक्षत्र तारा मण्डल के समीप एक अनाम ग्रह की खोज का वर्णन उस ग्रह की समता पृथ्वी से करना एवं मानव स्त्री युग्मों की कल्पना उनकी विस्तृत अनुभूति का द्योतक है। कथा नायिका कुर्निकोवा के मानस-पटल पर अनेकानेक स्मृतियाँ उद्भासित होती हैं- यथा ''तुम्हारे इन सुदीर्घ नयनों की गारिमा, सौन्दर्य तो नेत्र मध्य निहित कालिमा ही पदान करती है।....तुम साक्षात हिम धवला प्रतीत होती हो और फिर तुम तो जानती ही हो कि तुम्हें देखकर युवकगण क्या गाने लगते हैं.......उसके स्मृति पटल पर अपेक्षाकृत नवीन घटनाओं, क्रमों के बिम्ब उभरने लगे3।...''
एक वैज्ञानिक कथा में पूर्वदीप्ति शैली का अन्यंत ही मनोरम उदाहरण है।
वहीं ''अरुण वर्ण आलौकिक - आभामय'' संस्कृत निष्ठ सुबोध, उक्ति वैचित्र से पूर्ण अनुप्रसिक पदावली है। तो ''भ्रामरी जाप सम ध्वनि''4 में उपमा शैली का परिचय मिलता है। कथा में कथाकार की उर्वर कल्पना शक्ति का परिचय मिलता , जो एक संदेश भी लेकर आया है''। स्त्री नव पाषाण युग अर्थात विगत के 10-15 हजार वर्षों में कभी भी आज की भांति स्वतंत्र नहीं रही।
पर अब नारी की स्थिति में सामाजिक परिवेश में, परिर्वतन हुआ है। वह पुरुष के समकक्ष हो गयी है।
जहाँ एक ओर द्वापर युग में द्र्रौपदी चीर हरण का उदाहरण डॉ. उपाध्याय की विज्ञान कथा का ऐतिहासिक दृष्टिकोण है, वहीं धरा पर मानव जीवन के प्रादुर्भाव संबंधित विज्ञान सम्मत दाशर्निक चिंतन भी है। उदाहरण-''अंतरिक्ष यात्रा में कुर्निकोवा के मानस में मानव अस्तिव सबन्धी अनेक विचार चल चित्र की भाँति आते जा रहे थे। आकर्षण....नर नारी, का एक सामान्य जैव रसायनिक और मानवों में सृजन ....संतति सृजन का, उस आधार है। नर और नारी में सृजनात्मक प्रेरणा कारक सौंदर्य है, तथा इसी के प्रभाव के फलस्वरूप, अंतिम परिणति में जैव रसायनों हारमोनों ... नव जीवन की सृष्टि करता है।''5
'दूसरा नहुष' एक विज्ञान कथा होते हुए भी पूर्णरूप से संस्कृतनिष्ट उक्तियों में श्रंगारित व उपमाओं के रूप से स्निक्त एक अद्भुत कथा है। जिसमें एक तरफ मंगल ग्रह से प्राप्त उल्कापिण्ड की खोज व संरचना को दृष्टिपात किया है वहीं इन्जिनियर पुरंदर अपनी सहयात्री ओल्गा के सौंदर्य की स्निगधता चाहते हुए भी नहीं प्राप्त कर पाते व पूर्णरूपेण उसी तरह जैसे मानवेन्द्र नहुष शची के सान्निध्य की कामना में कामातुर हो ऋषियों द्वारा शाप-ग्रसित होकर पृथ्वी पर गिर जाते हैं कथा नायक पुरंदर को भी अंतरिक्ष से धरा पर जाना पड़ता है।
कथा में अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा उल्का पिण्ड को टे्रप किया जाता है, उसका परीक्षण किया जाता है एवं एक जीवाणु प्रजाति की उपस्थिति सभी को आकृष्ट करती है। कथा में ऐतिहासिक उदाहरणों द्वारा तथ्य की स्थापित करने की डॉ. उपाध्याय जी की कला दृष्टिगत होती है। सुकवि भास्कराचार्य द्वितीय की 'लीलावती' की ''बाले बाल कुरंग लोलनमने ....है'' तो डॉ. उपाध्याय जी की 'ओल्गा तुम्हारे नेत्रों में वोदका सी मादकता है।' ''मंगल अंगार की भांति आभा उत्पन्न कर अपना अंगारक नाम सार्थक कर रहा था''
पंक्ति का वैचिŒय देखने योग्य है। पुरन्दर का ओल्गा को कथन-`तुम्हारा कक्ष में आना, इस क्षेत्र में आना विकसित पीत पुष्पों की पीतवणीZ आभा के साथ वंसत ऋतु के आगमन सा आह्लाददायी है, सुखद है।1´ गद्य में उपमा का उत्कृष्ट उदाहरण है। कथा संग्रह के नाम से मण्डित आधुनिक ययाति में कथा नायिका डॉ. प्रियवदा बनौषधि से एक तत्व को खोज निकालती है जिसे लेने के उपरान्त नर जाति में कामोत्तेजना तीव्र रूप से जाग्रत होती है, साथ ही एक दूसरी औषधि की खोज भी करती है जो रक्त के द्वारा मस्तिष्क के सेक्स संवेदनात्मक क्षेत्र के न्यूरानों को निष्क्रिय कर देती है। और सेक्स की संवेदना समाप्त हो जाती है। प्रियम्बदा को अपने काम लोलुप कथाकथित पति के साथ अपनी पुत्री केा विवाह संबन्ध में देखना पड़ रहा है। उसने अपनी पुत्री शिखा को कामभावना को शिथिल करनें वाला स्पे दिया, जिसके प्रयोग द्वारा शिखा को वास्तविकता का ज्ञान हुआ´ और डॉ. प्रियंनदा का संत्रास मुक्त मन अन्ंात आकाश में उल्लासित हो विचरण करने लगा करने लगा, ठीक उसी तरह जैसे प्रसाद जी की ``कामायनी´´ में जब समरसता की स्थिति आती है तो कवि कहते है-
समरस थे जड़ या चेतन। सुन्दर साकार बना था।।
चेतनता एक विलसती। आनन्द अखण्ड घना था।।
पूर्व दीप्ति शैली में पूर्ण जीवन चक्र की व्याख्या करना डॉ. उपाध्याय जी की वर्णन शैली की विशेषता है ``जैसे-जैसे उनके मानस पटल पर विगत झेली गयी बालिका प्रियंबदा की असहाय स्थिति, संत्रास और पीड़ा ..उस नर पशु की.....उस 70 वषीZय स्त्री देह भोगी लोलुप की......नव युवती से उद्दीपन प्राप्त करने की पौराणिक नृप ययाति की भांति कामातुर पशु का प्रयास ...उसकी तेज चलती साँसे और कुछ ही क्षणों में, मूछिZत सा उसका शान्त हो जाना।´´6
पूर्व दीप्ति शैली में पूर्व की घटी घटनाओं में `विगत के बिम्ब´ उक्ति का जहाँ-तहाँ अत्त्यंत सहजता से प्रयोग कर, वर्णन केा पाठक के समझने हेतु अत्यधिक सुलभ बना दिया है। `आधुनिक ययाति´ एक ऐसी वैज्ञानिक कथा है जिसमेें वैज्ञानिकता कथानक पर हावी नहीं हो पायी, और न कथानक विज्ञान से परे है। दोनों एक दूसरे में इस प्रकार एकीकार हैं मानो दोनों का समागम हो गया है। सम्पूर्ण कथा को पौैराणिक ययाति की कामुकता के बिम्ब लेकर बिर्णत किया गया है। जिसके द्वारा लेखक को ऐतिहासिक प्रेम व भारतीय पौराणिक संदर्भों के प्रति रुझान व लगाव दृष्टिगत होता है। यथा-
``उन्हें देखकर डॉ. प्रियबंदा के मन में पौराणिक नृप ययाति का स्मरण हो आया- वह भी तो अपने कनिष्ठ पुत्र पुरु से पुर्नयौवन प्राप्त करने के उपरान्त इन्हीं बन्दरों की भांति अपनी, उत्तेजना शान्त करने के लिए ....भोग के हेतु नारी की, स्त्री की, खोज करने लगा होगा...ठीक वैसे उस नर पशु की भाँति जिसने स्वत: डॉ. प्रियबंदा केा विवश कर दिया था।´´6
जिससे मानवता बची रहे कथा में वर्तमान की ज्वलंत समस्या आतंकवाद को उभारा गया है। साथ ही जैविक युद्ध से उत्पन्न भयावह स्थिति को भी प्रकट किया गया है। डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय ने एन्टोऐविओला वैिक्सन के निर्माण की कल्पना की जिससे जैविक युद्धों से मानवता को सुरक्षित रखा जा सके। प्रस्तुत कथा में विभिन्न स्थानों पर काव्यात्मक एवं िक्लष्ट शब्दावली युक्त साहित्यिक भाषा का प्रयोग मिलता है- यथा-´ इस अप्रिय, अमानवीय, अवंाछित दुष्कृत्य से सम्बन्धित समाचार को पढ़ने के प्रायश्चित स्वरूप डॉ. रजत प्रात: कालीन प्रथम चाय के आस्वादन का आनन्द न उठा सके। उसे उन्होंने तत्काल कंठ के नीचे उतार कर एकत्रित कटु औषधि की भांति उदरस्य कर लिया´´1
``युद्वोन्माद का विषाक्त दुर्दान्त दैत्य´´ उक्ति में उक्ति में युद्ध का मानवीकरण अत्यंत ही सरस प्रतीत होता है। `अंतरिक्ष दस्यु´´ नामक विज्ञान कथा अपराधिक वृत्ति से ग्रसित मनुष्यों की कथा है। साथ ही विज्ञान के असंतुलित प्रयोगों को भी रेखाकिंत किया गया है। डॉ. अलवर्ती वापस न आ सके - एक विशुद्ध ``हार्डZ कोर´´ विज्ञान कथा है, जो मानव के शरीर स्थानान्तरण की अवधारण को समझाती है। पूर्व दीप्ति शैली से सुसज्जित ``लोह भक्षी´´ कथा में कथाकार ने मंगल भास्कर सरोवर क्षेत्र सम्बंधित अनेकानेक सूचनाएँ तो पाठक केा प्रेषित करी हैं, साथ ही एक नवीन बेसिलस प्राजाति के माइक्रों बैक्टीरिया की कल्पना द्वारा कथा को सूत्रों में पिरोया है, जो लोहे तत्व का भोज्य करता है। ऐसे में उसने अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर की लाल कोशिकाओं को नष्ट कर उन्हें मृत्यु दे दी। विज्ञान कथा में बोझिलता के स्थान पर रोचकता को प्रवाहित करने हेतु डॉ. उपाध्याय ने अत्यंत ही सुबोध रूप में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है- जब वे डॉ. सिसिल के रूप सौन्दर्य की तुलना ``मंगल´´ के जल से करते हैं- ``यथा डॉ. सिसिल लंबी छरहरी, नीली आँखों वाली जल विशेषज्ञा थीं उनकी नीली आँखों का स्मरण मंगल ग्रह पर जल का स्मरण है।´´7
`फोबोस विखंडित हो गया´ तकनीकी व शिल्पगत दृष्टि से पाठक को प्रभावित किये बिना नहीं रहती। बिन्दु-दर-बिन्दु पाठक के मानस पटल पर फोबोस के विखण्डन के चित्र उभर जाते हैं कथाकार ने संकेत दिया है कि किस प्रकार मानवीय ़त्रुटि विनाश का मूक खेल, खेल जाती है। अत्यधिक ऊर्जा क्षरण के परिणामस्वरूप फोबोस उपग्रह विखण्डित हो गया।
`उस दुघZटना के बाद´ साहित्यिक एवं वैज्ञानिक दोनों परिप्रेक्षों को लेकर लिखी गयी है। जहाँ काव्यात्मक अलंकारिक व संस्कृतनिष्ट शब्दावली से ओत-प्रोत एक श्रंगारिक विज्ञान कथा है। जिसमें श्रंगार के दोनों पक्ष संयोग व वियोग दृष्टिगत होते है।
कथा का वैज्ञानिक पक्ष- एड्स के निजात हेतु औषधि की खोज करते हुए कथा नायिका उसी वाइरस से संक्रमित हो जाती है, पर नियमित व्यायाम, अपनी दृढ इच्छा व मानसिक शाक्ति, तथा जीने की उत्कृष्ट जिजीविषा के फलस्वरूप वह पूर्णत: स्वरूप हो जाती है।
कथा के प्रारम्भ में नायक डॉ. रसेल का नायिका लिजा से मिलन व उनके मनोभावों के विभिन्न पक्षों का अन्योक्ति रूप में वर्णन किया गया है, उसी रूप में जैसे रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ श्रंगारिक कवि ``बिहारी´´ ने अपनी ``सतसई´´ में नायक-नायिका के मिलन का वर्णन किया था भाव साम्य देखिए-
`कहत नटत रीझत खिजत, मिलन खिलन लजियात।
भरे भौन सी करत है, नयन ही सो बात।।´´ (बिहारी)
`वे मंत्र मुग्ध की भांति रुक गए चकित सेे स्तबध से, प्रयासरत हो गए थे मानसिक धरातल पर.....उनके सामने से चपल चंचल चपलता सी चली जा रही थी।´´8
कथाकार ने स्थान-स्थान पर अपने तर्क व विर्णत बात को समझाने हेतु ऐतिहासिक पात्रों का (वृहत्कथा, कादम्बनी,माधवानल, कामंकदला आदि। उदाहरण लिया है।
यथा-
`पेरिस का विश्वविख्यात प्रतिनिधि-ऐफिल टावर, जो सरिता सीन के तट पर स्थित है, इस रास रंग को, नृत्य की, बाद्यों की मदभरी मधुर ध्वनियों को स्थित, प्रज्ञ, तटस्थ, निरपेक्ष प्रत्यक्षदशीZ-कामारि शिव के प्रहरी की भांति देख रहा था।9
`उस पल के पूर्व´ एक मार्मिक, संवेदनशील, एवं हृदयविवारक विज्ञान कथा है, जो अंतरिक्ष यात्री `कल्पना चावला´ की स्मृति से जुड़ी है। अंतरिक्ष में असमथ कई दुघZटनाएँ घट जाती है, जिसका परिणाम होता है-
`के.सी. निश्चेष्ट थी....उसका चेहरा धूमिल हो गया था, जैसे घटना के प्रभाव ने उसके मानस में´ ममतामयी माँ के.सी.-कल्पना चावला के बिम्ब अंकित कर दिये हंों और उसका परोक्ष मेें कायान्तरण हो गया हो।´´9
कथा में भारतवासियों की एक प्रमुख विशेषता का उल्ल्ेाख किया है। ``सहज सहनशील और सभी से मैत्री भाव रखने वाली-भारतीय।´´9 ऐसी दुघZटनाओं के उपरान्त भी मानव अपनी खोजों की तरफ अग्रसर रहता है और सृष्टि के अनबूझे रहस्यों को भेदने का प्रयत्न करता रहता है।
``खून´´
कवि नीरज की पंक्तियाँ-
`जाति-पंाति से बड़ा धर्म है,
धर्म-ध्यान से बड़ा कर्म है।
कर्म काण्ड से बड़ा मर्म है,
मगर सभी से बड़ा यहाँ वह छोटा सा इंसान है,
अगर वह प्यार करें तो धरती स्वर्ग समान है।।
इसी भावना के ओत-प्रोत लिखी गयी कथा है ``खून´´ जिसमें कथाकार ने धार्मिक संकीर्णता एवं साम्प्रदायिक मोह जैसी ज्वलंत समस्या का अत्यंत ही हृदयग्राही चित्रण किया है।
मजहबी संकीर्णताओं को त्याग नायिका `नगमा´ को उसके पडौसी `जीवन´ द्वारा जीवनदान मिला।
प्रस्तुत कथा के द्वारा डॉ. उपाध्याय जी यह संदेश प्रवाहित करना चाहते है-``भारतीय संस्कृति का आधार भावनात्मक एकता है, किन्तु कई बार अनेक स्वार्थी लोग, भाषा भेद क्षेत्रीय मोह जातिवाद जैसी संकीर्ण भावनाओं को प्रबल करवा देते है, परिणामस्वरूप झगड़े, दंंगे, लड़ाईयाँ, मारधाड़, धर्मयुद्व, साम्प्रदायिक विषयुद्ध आदि फैलने लगते हैं। व्यक्ति डर, भय, मानसिक तनाव से घिर जाता है। साम्प्रदायिक आग फैलने लगती है। मानव-मानव के रक्त का प्यासा हो जाता है। नर-नारियों की हत्या होती है। मासूम लोग तबाह हो जाते है। दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को लूटा जाता है। जीवन्त नगर श्मशान की शांति में बदल जाता है।
क्या साम्प्रदायिक दंगे भारत माता पर भंयकर कलंक नहीं हैं?े
राष्ट्र की प्रगति के लिए बाधक नहीं है?
सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन के लिए अभिशाप नहीं है?
पर्यावरण असंतुलन, प्रदूषण एवं भूमण्डलीकरण जैसे विषयों को उद्घाटित करती है कथा `अंतिम जल प्लवन´। अपनी सुविधा हेतु मानव ने वैज्ञानिक देनों का गलत प्रयोग किया, फलत: जनसंख्या में अतिशय वृद्धि, धरा की वन संपदा का नाश, वनस्पतियों अतिशय दोहन, आदि से धरा को आवृत्त किए हुए ओजोन गैस का कवच प्रभावित हो कर नष्ट हो गया। अन्त में जो दृश्य उभरता है, वह है जल प्लवन का, साथ ही कथाकार ने संदेश दिया है कि ईवश्रीय प्रदेय वस्तुओं का उचित रूप से प्रयोग करने का रूप विज्ञान है।
विष्णु जैसा पालक है। शिव जैसा संहारक है।।
पूजा इसकी शुद्ध भाव से करो आजके आराधक ललित शैली में लिखा गया यह कथा संग्रह वैज्ञानिक साहित्य में रुचि लेने वाले पाठकों केा ही नहीं अपितु हर वर्ग के पाठकों को पसन्द आ रहा है प्रस्तुत कथा संग्रह में डॉ. राजिव रंजन उपाध्याय जी की विस्तुत कल्पना व उर्वर शक्ति एवं बौद्विक व तकनीकी दृष्टिकोण दृष्टिगत होता है। स्वयं को कथा का बिन्दु बनाकर अपने अनुभूति केा लेखन रूप में अभिव्यक्त करने की इनके क्षमता को नमन।

1. आधुनिक ययाति: डॉ.राजीव रंजन उपाध्याय, पृ.14 वेगा
2. आधुनिक ययाति: अपराजित पृष्ठ 20
3. आधुनिक ययाति: अपराजित पृष्ठ 21
4. आधुनिक ययाति: अपराजित पृष्ठ 23
5. आधुनिक ययाति: दूसरा नहुष, पृ. 28
6. आधुनिक ययाति: आधुनिक ययाति, पृ. 34, 36
7. आधुनिक ययाति: लौह भक्षी, पृ. 16
8. आधुनिक ययाति: उस दुघZटना के बाद, पृष्ठ 75,76
9. आधुनिक ययाति: उस पल के पूर्व, पृष्ठ 88,86



Saturday, March 14, 2009

विज्ञान कथा

विज्ञान कथा : परिभाषा
मानवीय संवेदनाओं, अभिव्यक्तियों, मानवीय संवेगों, संकल्पों को,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्मिलित करती, कल्पना, रोमांच एवं रहस्य के आवरण से अपनी शब्द काया को अवगुिण्ठत किये, भविष्यमुखी कथा-विज्ञान कथा है।

प्रच्छन्न भारतीय विज्ञान-कथाएँ
हम आप सभी भागवत पुराण में विर्णत राजा उत्तानपाद एवं ध्रुव की कथा से परिचित हैं। भारतीय ज्योतिष के चरमोत्कर्ष के समय मे नक्षत्रों के मानवीकरण के प्रयास द्वारा ज्योतिष के ज्ञान को, जन-सामान्य तक, संप्रषित कर ने हेतु इन कथाओं की रचना की गई थी। भगवत-पुराण में विर्णत है कि राजा ध्रुव ने छत्तीस हजार वषोंZ तक राज्य किया था। ज्योतिष का प्रत्येक क्षात्र यह जानता है कि धु्रव नक्षत्र एक राशि पर तीन हजार वर्ष तक रहता है। इस प्रकार बारह राशियों पर वह छत्तीस हजार वर्षो तक रहता है, यही इस घु्रव नक्षत्र का राज्य काल होता है। धु्रव की भूमि नाम्नी पत्नी से दो पुत्र `वत्सर´ एवं `कल्प´ हुये थे। हम इस तथ्य से परिचित है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा एक वर्ष में पूरा करती है- यह अवधि वत्सर कहलाती है। इसी शब्द में संवत शब्द संलिप्त होकर संवत्सर बन गया। सूर्य ब्रह्माण्ड के केन्द्र की परिक्रमा एक कल्प में करता है- यही `कल्प´ भूमि का दूसरा पुत्र है। इसी प्रकार की कथा राजा त्रिशंकु की है, जो निश्चित रूप से भास्कराचार्य (द्वितीय) के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के संज्ञान के उपरान्त रची गयी होगी। आज के अनुमानत: दस हजार वर्ष पूर्व पृथ्वी लघु हिमयुग का दंश झेल रही थी। समय के साथ वातावरण में परिवर्तन हुआ ,धरा का तापक्रम बढ़ा, परन्तु सरितायें हिमाच्छादित रहीं। इसी को, इसी जल को हिम से मुक्त कराने की कथा है-इन्द्र द्वारा वृत्त का वध। यह अलंकारित कथा महाभारत के समय तक कथोपकथन के प्रवाह मेें, ढ़लकर, परिवर्तित कलेवर धारण कर लोकरंजन कर रही है। उपयुZक्त सभी कथाएँ, जो प्राचीन काल में वैज्ञानिक तथ्यों को अपने आँचल में छिपाये, लोक रंजन का माध्यम थीं तथ्यत: प्रच्छन्न विज्ञान कथाएँ हैं। इनमें विगत के घटना क्रमों की चर्चा तो है, परन्तु आगत के घटनाक्रम पर, उससे जुडे़ विविध संदर्भो पर चर्चा नहीं है। मानवीय संवेदनाओं, अभिव्यक्तियों,मानवीय संवेगों, संकल्पों को,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्मिलत करती, कल्पना, रोमांच एवं रहस्य के आवरण से अपनी शब्द काया को अवगुिण्ठत किये, भविष्यमुखी कथा-विज्ञान कथा है। वास्तव में विज्ञान कथा आने वाले कल को उद्भाषित करती कथा है- मानव के प्रौद्योगिकी, तकनीकों, के द्वारा प्रेरित होने प्रभावित होेने की कथा है।

भारत की प्रथम विज्ञान कथा
ऋग्वेद विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है। यह विश्व की धरोहर है। इसके अनेक मंडलों में प्रथम-मंडल सबसे अधिक प्राचीन है। इस मंडल में मानवीय कल्पना के आयामों का दर्शन होता है तथा वहीं पर इस मंडल के अलंकारित मंत्रो मेेंं विज्ञान एवं प्राद्योगिकी के विकास का भी झलक विद्यमान है। प्रारम्भ में मानव सरिताओं के जल पर आश्रित था। कालान्तर में मानवीय विस्तार के परिणाम स्वरूप वह सरिताओं से दूर कृषि आदि कार्यो के संपादन हेतु बसने लगा। सरिताओं से जल लाना कठिन था, इस कारण उसने घरती का खनन कर,उपलब्ध जल से अपना कार्य चलाना प्रारम्भ किया होगा। इस प्रकार के खनित कूप वषाZ के आने पर किनारे पर एकत्र खुदी हुई मिटृी से भर जाते रहें होगें। इस कारण सुदृढ़ कूप के निर्माण की आवश्यकताअोंं ने यज्ञ-वेदिका निर्माण की आवश्यकता ने, उसे मिटृी की पकी हुई ईटों को बनाने के लिए प्ररित किया होगा। ईंटों को पकाने की तकनीक मानव द्वारा पहिया अथवा चक्र बनाने की तकनीक से कम महत्वपूर्ण नहीं थी। पकी हुई ईटों के प्रयोग ने यज्ञ हेतु निर्माण की जाने वाली वेदिकाओं को स्थायित्व ही नहीं प्रदान किया वरना कूपों को सृदृढ़ता प्रदान करने का प्रारम्भ किया। स्वाभाविक है कि गहरे और सुदृढ़ कूप के निर्माण कार्य मेें तकनीक समस्या शिल्पियों के सम्मुख आई होगी। इस की झंकार निम्न अलंकारिक मंत्र में स्पष्ट सुनायी देती है-त्रित: कूपे वहितो देवान्हवात ऊतये। तच्छुश्राव बृहस्पति: कृण्वन्न हूरणादुरू वित्तमें अस्य रोदसी।। -ऋग्वेद: मं. 1 सू.105 मंत्र. 11 त्रित नामक कूप निर्माता शिल्पी निर्माण काल में गोल दिख रहे कूप में, कुएँ में फँस गया। उसने अपने उद्धार के लिए देवगुरु बृहस्पति का आह्वान किया, पुकारा। गणितज्ञ देवगुरु बृहस्पति ने कूप का पूर्णरूपेण गोल न होना जानकर, उसकी दीवारों को पूर्ण रूपेण लम्बवत करने, कूप को गोल करने का संकेत देकर, शिल्पी त्रित का उद्धार किया। तथ्यत: यदि कूप की परिधि एवं व्यास का अनुपात 22/7 से न्यूनाधिक होगा, तो वृत अशुद्ध होगा तथा निर्माण पूर्ण रूपेण स्थिर नहीं रह सकेगा, गिर जायेगा, यह सर्वविदित गणितीय तथ्य है। यह छोटी सी, महत्त्वपूर्ण कथा, भविष्य में कूप निर्माण की तकनीक को ही नहीं बताती, वरन इस कथा से स्पष्ट होता है कि भविष्य में कूपों के निर्माण में इस प्रकार की त्रुटि संशोधन कर, शिल्पियों ने पुराकाल में सुदृढ़ कूपों के निर्माण का शंखनाद किया होगा। इतना ही नहीं यह भविष्यमुखी-भारत की प्रथम विज्ञान कथा, पाई के मान को वैदिक कालीन गणितज्ञों को ज्ञात होने का भी संकेत देती है।

Saturday, February 28, 2009

हिन्दी विज्ञान कथाओं के सृजन का परिदृश्य


डॉ राजीव रंजन उपाध्याय

विश्व प्रसिध्द भौतिकविद फाइनमैन ने अपने लेख श्श्वैल्यूज ऑफ साइंसश्श् में लिखा है श्श्जब हम किसी रहस्य अथवा कौंध से बारम्बर साक्षात्कार करते हैं उस समय हमारी अनुभूति का साक्षात्कार सत्य से होता है। इस ज्ञान की गहनता में प्रवृष्टि आश्चर्यजनक रहस्यों का सफल उद्धाटन करती है। उस ज्ञान को कवि और कलाकार देख नहीं पातेए उसका अनुभव नहीं कर पाते। विज्ञान के इस प्रकार के शाश्वत मूल्य इसी कारण कवियों और कलाकारों द्वारा अचर्चित रह गएए अज्ञेय रह गयेए अछूते रह गए।श्श् फाइनमैन की यह व्यथाए यह अकुलाहट एक उर्वरए सृजनशीन व्यक्ति को सृजन करनेए लेखन अथवा चित्रांकन के माध्यम से उस प्रच्छन्न भाव को व्यक्त करने का माध्यम बनती है जिसे वह स्पष्ट करना चाहता है। मानव की इसी भावना ने पुराकाल से ही कथोपकथन को विकसित करए प्रकृति के रहस्यों को समझनेए स्पष्ट करने हेतु भावभिव्यक्त का माध्यम स्वीकार किया होगा और इसी के साथ कथा कीए कहानी की निर्झणी प्रवाहित हुई होगी। यही कारण है कि वैश्विक पटल पर प्रारम्भिक कथाएँ समानरूपिणी हैं और कभी.कभी वे सहोदरी सम लगने लगती हैं। देवोंए दैत्योंए असुरों की उत्पत्तिा कीए भारतीय परिप्रेक्ष की कथाएं अपने किंचित परिवर्तित स्वरूप में ईरानी तथा ग्रीक साहित्य में आज भी सुरक्षित हैं। इनको हम जिन्दावेस्ता की कथाओं मेंए भारतीय सुरों को ईरानी अहुरों (असुरोंद्ध के रूप में खचित देख सकते हैं या ग्रीक पुराणों में सृष्टि की आदि जननी सुरोनोम की संतति की कथा का अनुशीलन करते हुए उपर्युक्त तथ्यों को पुनरू चित्रित करने में सफल सिध्द हो सकते हैं। इसी प्रकार अग्नि के चौर्य से लेकर उसके विविध पक्षों से सम्बन्धित कथाएं विश्व के प्राचीन साहित्य में विद्यमान हैं। कारण है अग्नि के चतुर्दिक मानव सभ्यता का विकास हुआ। इस प्रकार की कथाएँ जो हमारे प्राचीन वाँग्मय में प्रचुरता से विद्यमान हैं धरा के हिमीकरण (वृत्ताासुरद्ध के उपरान्त जल की उपलब्धताए पृथ्वी के धरातल पर हो रहे अनेक भूगर्भीय परिवर्तनों के बिम्ब एवं वर्णनए यंत्रों और यंत्र चलित नौकाओं आदि के विवरण (यद्यपि जिनको पुननिर्मित करने की पध्दति की अनुप्लब्धता को ध्यान में रखते हुएद्ध इस प्रकार की अनेकों कथाओं और विवरणों को प्रच्छन्न विज्ञान कथाओं की श्रेणी में रखना ही उचित होगा।1 इसी प्रकार की कथाओं के इस वर्ग में, विविध प्रकार के आश्चर्यजनक चिकित्सकीय मिथकों को भी सहजता से सिम्मलित किया जा सकता है।1
पृथ्वी से चन्द्रमा का संबंध सर्वविदित है। इस कारण धरा के इस निकटतम उपग्रह, जो हमारे लिए बाल्यावस्था से ही कुतूहलजनक रहा है, के विषय में अनेकों कथाएँ विश्व की प्रत्येक भाषा में विद्यमान है।
यदि हम महिर्ष नारद की मिथकीय बह्माण्ड की कथाओं को महत्व न दें तो भी ल्यूसियन ऑफ सोनासाटा की चन्द्र यात्रा संबंधित कथा, जो 160 इस्वी में लिखी गयी थी और जिसका विवरण ``वेरा-हिस्टोरिया´´ में उपलब्ध है, को निश्चित रूपेण पहली विज्ञान कथा माना जा सकता है। इस कथा का नायक ल्यूसियन वायु की शक्ति से चन्द्रमा की यात्रा कर पृथ्वी से भिन्न चन्द्रवासियों से भ्ोंट करता है। यह भिन्नता शारीरिक ही नहीं वरन् सांस्कृतिक भी होती है, जिसका विवरण इस कथा को विशिष्टता प्रदान करता है।
लेखन और चित्रांकन में यद्यपि भावों की अभिव्यक्ति की मूल भावना निहित रहती है परन्तु बहुत ही कम चित्रकार सफल लेखक होते हैं। चित्रकार अपनी कल्पनाओं केा मूर्त स्वरूप रेखओं के माध्यम से देता है और लेखक शब्दों के माध्यम से, अक्षरों के माध्यम से। इस तक्र की कसौटी पर लियोनार्दो द विंची वैज्ञानिक चितेरे हो सकते हैं, विज्ञान कथाकार नहीं।2
आधुनिक विज्ञान का जन्म योरप में हुआ था अत: इस विधा के जन्म के उषाकाल में विज्ञान दृष्टि युक्त कथाओं का प्रणयन अस्वाभाविक नहीं लगता। ``राविन्सन क्रूसो´´ के अमर कथाकार डैनियल डिफो की विज्ञान कथा, गल्प, फैन्तासी `द कन्सालिडेटर´ का सृजन ई. 1705 में एक महत्वपूर्ण अवदान प्रतीत होता है। परन्तु तथ्यत: वास्तविक विज्ञान कथा प्रसिद्ध रोमांटिक, आंग्ल कवि पी. वी. शैली की पत्नी मेरी शैली (1789-1851) की लेखनी से ``फ्रेन्केन्टाइन´´ के रूप में निसृत हुई थी।
पश्चिमी विज्ञान कथा का वास्तविक शंखनाद प्रसिद्ध अमेरिकन लेखक, कवि, एडगर एलन पो द्वारा ``बैलून होक्स´´ के रूप में 1844 ई में किया गया था। इस कथा के कारण एडगर एलन पो प्रथम विज्ञान कथाकार के रूप में चर्चित ही नहीं हुए वरन् अमेरिकन विज्ञान कथा पत्रिका ``अमेजिंग स्टोरीज´´ के विश्व ख्याति प्राप्त विज्ञान लेखक एवं इस पत्रिका के संपादक हयूगो गन्र्सबैक ने उन्हें `` फादर ऑफ साइन्टीफिक्शन´´ माना था। वास्तव मं इसी शब्द का संशोधित रूप है ``साइंस फिक्शन´´। पश्चिमी गोलार्ध में योरप और अमेरिका में सृजित हो रही विज्ञान कथाओं के करीब चालीस वर्ष बाद मूर्धन्य वैज्ञानिक सर जगदीश चन्द्र बसु द्वारा बंगाली की प्रथम विज्ञान कथा ``पालतक तूफान´´ 1897 ई. में भारत में प्रकाशित हुयी थी।3
बंगाली भाषा के, बंग्ला साहित्य की भाँति मराठी भाषा का भी साहित्य अतीव समृद्ध है परन्तु इस भाषा की प्रथम विज्ञान कथा `तरचेहास्य´ 1915 में प्रकाशित हुई थी। उपयुZक्त दोनों कथाओं में विज्ञान का संम्पुट था। `पलातक तूफान´ (तूफान पर विजय) सरफेस टेंन्शन पर आधारित थी तो तरचेहास्य (तारे का रहस्य) तारे के विज्ञान सम्मत पक्ष से संबंधित थी। पश्चिमी गोलार्ध में सृजित क्रमश: एडगर एलन पो, जूल्स बर्न, एच. जी. बेल्स की रोचक रोमांचक विज्ञान कथाओं का प्रभाव बंगला, मराठी तथा हिन्दी की अनुदित तथा मौलिक कथाओं पर स्पष्ट रूप से दृष्टि गोचर होने लगा था। यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि हिन्दी की प्रथम लम्बी विज्ञान कथा ``आश्चर्य वृत्तान्त´´4 जो साहित्याचार्य पं. अिम्बकादत्त व्यास (1858-1900) द्वारा विरचित तथा उन्हीं के समाचार पत्र ``पीयूष प्रवाह´´ में 1884 से 1888 तक के अंकों में प्रकाशित होती रही, वह भी जूल्स बर्न के उपन्यास `जर्नी टू सेन्टर आफ द अर्थ´ के चुम्बकीय प्रभाव से अछूती न रह सकी। इसी प्रकार बाबू केशव प्रसाद सिंह द्वारा लिखी गई और उस
युग की प्रतििष्ठत हिन्दी पत्रिका सरस्वती के भाग 1 संख्या 6, 1900 ईस्वी के अंक में प्रकाशित ``चन्द्र लोक की यात्रा´´5 जूल्स बर्न के उपन्यास ``फाइव वीक्स इन बैलून´´ के प्रभाव से मुक्त नहीं है। इन दोनों कथाओं के अनुशीलन से एक तथ्य बार-बार स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ता है कि इनके लेखकों ने इन कथाओं में भारतीय परिवेश को सुन्दर रूप से चित्रित एवं स्थापित करने का सराहनीय प्रयास किया है। इतना ही नहीं वरन् अब हिन्दी के विज्ञान कथा इतिहास में ``आश्चर्य वृत्तान्त´´ को बंगाली एवं मराठी विज्ञान कथाओं के पूर्ववर्ती होने का गौरव प्राप्त हो चुका है।
सरस्वती में ही, सत्यदेव परिव्राजक की विज्ञान कथा जो भौतिक विज्ञान के अनुनाद के सिद्धान्त पर आधारित थी, तथा जिसके पात्र और पृष्ठभूमि अभारतीय थे, ईस्वी 1908 में ``आश्चर्यजनक घण्टी´´ के नाम से प्रकाशित हुई थी। सत्यदेव परिव्राजक की यह कथा उनके दीघZकालीन विदेश प्रवास एवं अमेरिकन विश्व विद्यालयों में विज्ञान के अध्ययन का परिणाम थी। इस कथा को विज्ञान कथा के इतिहास के अध्येयताओं हेतु विज्ञान कथा त्रैमासिक में पुनर्प्रकाशित किया जा चुका है।6
ऐतिहासिक क्रम से चलते हुए प्रकाश के अपवर्तन पर आधारित प्रेम बल्लभ जोशी की ``छाया पुरुष´´ सन् 1915 विज्ञान परिषद प्रयाग की पत्रिका ``विज्ञान´´ में प्रकाशित हुई थी तथा इसी समय में अनादिघन वंदोपाध्याय की मंगल यात्रा (1915-16) भी प्रकाश में आई थी। जिसमें पृथ्वी से चार इंच ऊपर रहकर चलने वाली विद्युत गाड़ियों की चर्चा है जो क्या आज की मैग्निटिक ट्रेनें नहीं है?
इस कथा के प्रकाशित होने के उपरान्त हिन्दी का विपुल पाठक वर्ग, देवकी नन्दन खत्री (1861-1913) जो काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अल्पकाल तक अध्यक्ष रहे थे, के `चन्द्रकान्ता´ एवं `चन्द्रकान्ता संतति´ के आकर्षक वर्णनों में डूबा रहा। फलस्वरूप उर्दू का विशाल पाठक वर्ग भी इन उपन्यासों को पढ़ने का आनन्द उठाने हेतु हिन्दी सीखने को आतुर हो गया। देवकी नन्दन खत्री का तिलिस्म और ऐयार पाठकों के सर सवार होकर इन उपन्यासों की प्रशस्ति ही नहीं गाने लगा वरन् इन पाठकों के माध्यम से हिन्दी भाषा की भी वृद्धि करने में प्रभावी रहा।
आज हम हयूगों गंर्सबैक द्वारा स्थापित विज्ञान कथा की विश्वविख्यात प्रतििष्ठत पत्रिका ``अमेंजिंग स्टोरीज´´ से परिचित से हैं तथा अमेरिका की दूसरी पत्रिकाओं यथा ``मैंगजीन आफ फैन्टेसी एण्ड साइंस फिक्शन´´, इन्टरजोन, ``एनालाग साइंस फिक्शन एण्ड फैक्टस´´ ``आसिमोवस साइंस फिक्सन´´ आदि पत्रिकाओं के विज्ञान कथा के सृजन क्षेत्र में उनके द्वारा किए जा रहे अवदानों से परिचित हैं। इन पत्रिकाओं विशेषकर ``मैंगजीन आफ फैन्टेसी एण्ड साइंस फिक्शन´´, ``आसिमोवस साइंस फिक्सन´´ आदि पत्रिकाओं के विज्ञान कथा के सृजन क्षेत्र में उनके द्वारा किए जा रहे अवदानों से परिचित हैं। इन पत्रिकाओं विशेषकर ``मैंगजीन आफ फैन्टेसी एण्ड साइंस फिक्शन´´ में जहाँ एक तरफ हार्डकोर विज्ञान कथाएं प्रकाशित होती हैं, जैसे `आधुनिक ययाति´ नामक विज्ञान कथा संग्रह की ``डॉ. अलबर्तो वापस न आ सके।7 वहीं दूसरी तरफ इस पत्रिका में स्वैरता युक्त, फैन्टेसी युक्त, विज्ञान कथाएँ प्रकाशित होती हैं।´´
स्वैरता-फैन्टासी और तिलिस्म क्या समानगुणधर्मा शब्द है? शब्द कोष के अनुसार तिलिस्म का अर्थ जादू, इन्द्रजाल, करामात आदि होता है, परन्तु इसका उद्भव अरविक है और वहाँ पर भी यह शब्द का समानार्थी रूप में प्रयोग होता है। फैन्टासी शब्द का अर्थ-इमैजिनेशन, मेन्टल इमेज, आदि है। इसी कारण देवकीनन्दन खत्री की `चन्द्रकान्ता´ एवं ``चन्द्रकान्ता-संतति´´ में जहाँ पर एक तरफ रंजित विवरण हैं वहीं दूसरी तरफ उन विवरणों में निहित अनेक वैज्ञानिक तथ्य भी हैं, जो इस लेखक की लेखनी के प्रभाव के कारण क्षमता, के कारण कुछ समय बाद विज्ञान की प्रगति के फलस्वरूप सत्य सिद्ध हुए हैं। क्या यह भविष्य दर्शन नहीं है? क्या यह विज्ञान कथा का एक विशिष्ट गुण नहीं है? अब में इन उपन्यासों में विर्णत कुछ तथ्यों की चर्चा करना चाहँगा।
यह सर्वविदित तथ्य है कि एैयारों के बटुए में बहुत सी वस्तुओं के साथ दो बड़े काम की चीजें रहती है। बुकनी और लखलखा। बुकनी किसी प्रकार का भी चूर्ण रहा हो यह व्यक्ति को बेहोश करने में सक्षम था तथा लखलखा-अमोनियम क्लोराइड और चूने का सम्भावित मिश्रण सदृष्य कोई वानस्पतिक-मिश्रण रहता होगा-जो (अमोनिया गैस उत्पन्न कर) व्यक्ति को होश में लाने का एक साधन था। इसके प्रयोग से प्रभावित व्यक्ति छींकता हुआ चैतन्य हो जाता था।
इस प्रकार तिलिस्म के भीतर और बाहर बहुत से आतंकित करने वाले आश्चर्यजनक कार्य होते रहते थे, जैसे टियर गैस, अश्रु गैसे के गोलों के फटने से वातावरण का विषाक्त होना, किसी दीवार पर खड़े हुए व्यक्ति का कुछ देर तक नीचे देखने के प्रयास के परिणाम स्वरूप नीचे हँसते हुए कूद जाना। क्या यह लाफिंग गैस नाईट्रस आक्साइड का प्रभाव नहीं हो सकता जो किसी अज्ञात हो चुकी विधि द्वारा उत्पन्न की जाती रही होगी? तिलिस्म के भीतर बाजे से गाना सुनाई पड़ना, आधुनिक केसेट रेकार्ड की भॉति, किसी चौकी का चलना, ऊपर नीचे आना (लिट) चलने वाली पुतलियाँ, (स्यूडोरोबो) स्वत: खुलने और बन्द होने वाले दरवाजे आटोमेटिक डोर, आज कोई आश्चर्य उत्पन्न नहीं करते पर उस युग में इस प्रकार के विवरण किसी पाठक को चमत्कृत करने के लिए पर्याप्त ही नहीं वरन वे प्रभावी रूप में लोकरंजन करने में सफल सिद्ध हुए थे।8
यहाँ पर यह इंगित करना समीचीन होगा कि आगरा के ताजमहल में लगे फौव्वारों को, जो उसके निर्माता के जीवन काल में पूर्णरूपेण कार्यरत थे, उन्हें आज अनेक प्रयासों के बाद भी चलाया नहीं जा सका है क्योंकि उनको चलाने की तकनीक हम समझ नहीं पा रहे हैं। इस कारण उपयुZक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन कृतियों के वर्णनों को प्रचछन्न विज्ञान कथाओं की श्रेणी में रखना उचित होगा न कि उन्हें मानस्विता वश, खारिज कर देना।
देवकीनन्दन खत्री के पुत्र श्री दुगाZ प्रसाद खत्री (1895-1974) ने अनेक वैज्ञानिक तथ्य युक्त उपन्यासों की रचना की, जिसमें प्रतिशोध (1925ई.) तथा स:शब्द से प्रारम्भ होने वाले वैज्ञानिक उपन्यासों में सुवर्णरेखा (1940ई.), स्वर्ग पुरी (1940ई.) सागर सम्राट(1950ई.) और साकेत (1952ई) हैं।
इस उपन्यासों के शीर्षक के नीचे खत्री जी ने वैज्ञानिक उपन्यास लिखा है। इन उपन्यासों की श्रृंखला में `रक्त मंडल,´ `सुफेद शैतान´ की गणना किए बिना खत्री जी के वैज्ञानिक उपान्यासों की सूची पूरी नहीं हो सकती। इस उपन्यासों में उन्होंने अपनी विशिष्ट वैज्ञानिक दृष्टि का प्रयोग कर विज्ञान संभाव्य शोधों एवं आविष्कारों का एक संसार चित्रित किया है, जिसमें परमाणु पिस्टल, चालक विहीन यान, रोबोट की 1921 ई. में की गई कल्पना के समान स्टील मैन की अवधारणा, फोनेाग्राफ, स्वचालित बन्दूक, तथा स्वेज नहर के निर्माण के पूर्व इसकी कल्पना के विवरण सहज ही सुलभ है।9
खत्री जी के उपन्यासों पर उनके समकालीन अंग्रेजी विज्ञान कथाकारों में एच.जी.वेल्स तथा पूर्ववर्ती सर आर्थर कानन डायल का प्रभाव अधिक दिखाई पड़ता है।10 इस प्रभाव की पृष्ठभूमि में खत्री जी के विज्ञान के विद्यार्थी होने का तथ्य भी मुख्य एवं महत्वपूर्ण है। श्री दुगाZ प्रसाद खत्री ने निश्चय ही अंग्रेजी भाषा के उपन्यासों को पढ़ा होगा और यही कारण रहा होगा कि उन्होने अतिकुशलता से डिकटरपिन के उपन्यास को ``साहसी डाकू´´ ``ला मिजराब्ल´´ को ``अभागे का भाग्य´´ तथा विश्वश्रुत उपन्यासकार अलेक्जैन्टर डूयूमा के ``काउन्ट ऑफ द मान्टक्रिस्टो´´ को ``मोतियों का खजाना´´ नाम से अनुवाद कर प्रकाशित किया था।10
निश्चित रूपेण श्री दुगाZ प्रसाद खत्री हिन्दी के प्रथम वैज्ञानिक उपन्यासकार है।11
श्री दुगाZ प्रसाद खत्री हिन्दी के समकालीन लाला श्री निवास दास (1852-1878) ने अनेक रचनाएँ प्रकाशित की परंतु इन सभी में अति चर्चित है उनकी औपन्यासिक कृति ``परीक्षा गुरु´´ जिसमेें ऐसे वैज्ञानिक आविष्कारों के बिम्ब हैं जो उस समय मात्र लेखक की कल्पना का अंश लगते थे परंतु कालान्तर में वे सत्य सिद्ध हुए। उन वर्णनों में फोटोग्राफी, बैलून, सूत कातने और बनने वाली मशीनें, लोहे की ढलाई करने वाली मशीन पनचक्की, गैस से उत्पन्न प्रकाश के विविरण अपने अनोखेपन के कारण सभी का ध्यान आकृष्ट करने में सफल रहे।
एक्स-रे के आविष्कार ने विज्ञान कथा लेखकों की कल्पना को अपने जन्म के समय से ही प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया था जिसका बिम्ब उस युग की लिखित प्रत्येक विज्ञान कथा में दृष्टिगोचर हो सकता है। इन्हीं किरणों का प्रभाव श्री राजेश्वर प्रसाद सिंह (1903-1987) की कृति ``मृत्यु किरण´´ (1932) में देखा जा सकता है।
``घुम्मकड़ शास्त्र´´, ``सोने की ढाल´´, ``वोल्गा से गंगा´´, आदि तथा ``मध्य एसिया का इतिहास´´ के स्वनामधन्य लेखक श्री राहुल सांस्कृत्यायन (1893-1963) की उर्वर मेधा का रचनात्मक फलक कितना व्यापक रहा हैं इसकी यहाँ चर्चा करना अभीष्ट नहीं है, क्योंकि उनके समुद्र समान रचना संसार को कुछ पंक्तियों से समेट पाना असम्भव है। इस कारण उनकी कृति ``बाइसवीं सदी´´ (1931) जो तथ्यत: एक वैज्ञानिक दृष्टि सम्पन्न औपन्यासिक कृति है पर कुछ शब्द कहना उचित होगा।
``बाइसवीं सदी´´ किताब महल इलाहाबाद से प्रकाशित (1931) हुई थी तथा प्रकाशन वर्ष से ही यह चर्चा का केन्द्र रही। इस पुस्तक में विश्व सरकार एवं विश्व भाषा की कल्पना ही नहीं विद्यमान थी वरन् फोटोफोन (वीजियो फोन) मोडम, इन्टरनेट जैसे दृष्टिगामी, संचार प्रणालियाँ, सुपर क्राप्स की परिकल्पना (आज की जेनेटिकैली इंजीनियरड क्राप्स) शीत सुप्तावस्था आदि के विवरण कथा सूत्र में पिरोये हुए मिलेंगे। इस प्रकार `बाइसवीं सदी´ वैज्ञानिक उपन्यासों की श्रृंखला की अप्रतिम कड़ी हैंं।
``जीवन की लहरें´´, ``मन के वातायन´´, ``जिज्ञासा´´ ``स्पप्न एवं सत्य´´, ``दीवाल कब गिरेगी´´ नामक विज्ञान कथा संग्रह जिसमें, वैज्ञानिक की साधना, आराधना, षड्यंत्र आकाशबेल, प्रेम कीटाण्ुा कैप्टन बसंत लाल, विज्ञानशाला में, किसके लिए सहारा, प्रश्न का उत्तर दो एवं संग्रह की मुख्य कथा दीवार कब गिरेगी नामक बारह कहानियाँ संग्रहीत हैं। यह संग्रह 1958 ई. में आया था तथा डॉ. ब्रज मोहन गुप्त (1916-1972) की साहित्यिक सृजनशीलता इन सभी कथाओं में स्पष्ट दिखती हैं।
इस संग्रह की कथा `विज्ञानशाला में´ पर एच.जी. वेल्स की 1897 ई. में प्रकाशित `इनाविजबिल मैन´ नामक रोचक विज्ञान कथा का स्पष्ट प्रभाव है, जो अस्वाभाविक नहीं है। क्योंकि उस समय के अधिकांश विज्ञान कथाकार पश्चिम में लिखे जा रहे विज्ञान कथा साहित्य से प्रभावित थे। विज्ञान की पृष्ठभूमि और उसका अध्ययन विज्ञानकथा के रचनाकारों के रचना संसार पर कथा की सृष्टि पर कितना विस्मयकारी प्रभाव उत्पन्न कर सकता है इसका अनुमान, श्री दुगाZप्रसाद खत्री जी जो स्वत: रसायन विज्ञान से स्नातक थे, के द्वारा विरचित उपन्यासों के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है। यही तथ्य यमुनादत्त वैष्णव अशोक के रचना संसार में भी प्रत्यक्ष रूप में उभर कर सामने आता है। अशोक जी के पंाच विज्ञान कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। अस्थिपंजर (1941), शैलगाथा (1948), भेड़ व मनुष्य(1953), अप्सरा का सम्मोहन (1961) तथा श्रेष्ठ वैज्ञानिक कहानियाँ (1949) अन्न का आविष्कार (1956) अपराधी वैज्ञानिक (1968) एवं हिम सुन्दरी (1971) हैं। अपने साहित्यिक शिल्प, विज्ञान सम्मत तथ्यों तथा रोचक वर्णनों के कारण पूर्ववर्ती अन्य विज्ञान कथाकारों के तुलना में आपकी रचनाएँ प्रथम पंक्ति में स्थान पाने की हकदार लगती हैं।
अशोक जी जीवन भर आबकारी विभाग की सेवाकर (1973 में) सेवा मुक्त होने के उपरान्त इलाहाबाद में ही बस गए। इलाहाबाद जहाँ पर छात्र रहते उन्होने हिन्दी परिषद् द्वारा 1937 में आयोजित कथा प्रतियोगिता में भाग लिया था तथा उनकी विज्ञान कथा ``वैज्ञानिक की पत्नी´´ को प्रथम और श्री हरिवंश राय बच्चन की रचना ``पत्थर और देवता´´ को द्वितीय पुरस्कार मिला था। तथ्यत: अशोक जी ने 1936 से ही कथा लेखन प्रारम्भ कर दिया था। उनकी प्रत्येक कथा की भाव भूमि में जिस प्रकार विज्ञान का सम्पुट विद्यमान है उसी प्रकार का कुमाऊँ का पर्वतीय आंचलिक परिवेश एवं उसका नैसिर्गक सौदर्य सर्वत्र दिखता है। वे अपनी माटी से जुड़े हुए विज्ञान कथाकार थे।
ज्येातिष की गणनाओं पर आधारित डॉ. सम्पूर्णानन्द का लघु उपन्यास ``पृथ्वी से सप्तिर्ष मंडल´´ (1953) एवं `वैशाली की नगर वधू,´ ``जय सोमनाथ,´´ ``वयम् रक्षाम:´´ जैसी विख्यात कृतियों के सृजक आचार्य चतुरसेन शास्त्री की लेखनी द्वारा निसृत `रवग्रास´ उनकी उर्वर मेंधां का चमत्कार है। भाषा, शिल्प विविधता तथा विज्ञान सम्मत तथ्यों युक्त ``रवग्रास´´ (1960) किसी का मनमुग्ध कर लेने सक्षम है।
विशुद्ध साहित्यकारों यथा डॉ. सम्पूर्णानन्द एवं आचार्य चतुरसेन शास्त्री (1891-1960) का विज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश कर विज्ञान के माध्यम से पाठकों को नवीन पाठन सामग्री प्रस्तुत करने के प्रयास की जितनी प्रंसशा की जाये वह कम है। मेरी दृष्टि में सरस्वती के वरद पुत्रों में बहुत ही स्वल्प संख्या के साहित्यकार इस प्रकार की व्यापक दृष्टि सम्पन्नता से युक्त होते हैं।
डॉ. शुभकार कपूर के अनुसार ``प्रस्तुत उपन्यास (रवग्रास) के कथानक का सबसे बड़ा दोष है, उसका विÜाृंखलित होना।´´ उपन्यास में दो सर्वथा स्वतंत्र कथानक हैं जिनमें किसी प्रकार का पौर्वापर्य नहीं है। इतना होते हुए भी विज्ञान जैसे नीरस विषय में भी रस संचार करके लेखक उपन्यास की रोचकता को अन्त तक रक्षा करने में पूर्ण सफल रहा है। वैज्ञानिक एवं राजनैतिक विवरणों के वात्याचक्र में ज्यों कथानक भटकने लगता है त्यों ही उपन्यासकार अपनी प्रबल कल्पना शक्ति के माध्यम से उसे पुन: सरस बनाकर एक नूतन मार्ग पर ला खड़ा करता है।11
इस श्रेणी के उपन्यासों के विषय में डॉ. सम्पूर्णानन्द का कथन ध्यातव्य है। वे लिखते हैं, ``जिस प्रकार कविता में कान्ता सम्मति शैली से नीति और धर्म का उपदेश दिया जाता है, उसी प्रकार कथा छल से नई खोजों का परिचय प्राप्त कराया जाता है। कथा तो बहाना मात्र है, उससे कोरे वैज्ञानिक बखान का रूखापन दूर हो जाता है।´´12
डॉ. नवल बिहारी मिश्र (1901-1978), हिन्दी साहित्य में, मिश्र बन्धु के नाम से विख्यात श्री गणेश बिहारी, कृष्ण बिहारी एवं शुकदेव बिहारी मिश्र के वंशज श्री कृष्ण बिहारी मिश्र के भास्वर सपूत थे। आपने लखनऊ के किगंजार्ज मेडिकल कालेज से 1920 में एम. बी. बी. एस. की परीक्षा उत्तीर्ण कर सीतापुर को अपनी कर्मभूमि बनाया। आप की ख्याति एक कुशल चिकित्सक एवं एक निपुण साहित्यकार के रूप में चर्चित थी। तथ्यत: हिन्दी विज्ञान कथा के सृजन घट को परिपूरित करने में आपका अविस्मरणीय योगदान रहा है।
आपने, आज से अनुमानत: 40-45 वर्ष पहले हिन्दी की दो प्रमुख पत्रिकाओं-विज्ञान जगत (इंडियन प्रेस, इलाहाबाद) तथा विज्ञान लोक (महेश न्यूज पेपर्स आगरा) तथा साहित्य पत्रिका `निहारिका´ का जिस दक्षता से संपादन किया था, उस की जितनी प्रसंशा की जाये वह न्यून ही रहेगी।
डॉ. नवल बिहारी मिश्र के विज्ञान कथा लेखन एवं विशेष कर फ्रेंच एवं अंग्रेजी में प्रकाशित वैज्ञानिक उपन्यासों का अनुवाद हिन्दी में करने की प्रेरणा प्रदान कर विज्ञान कथा के अनुदित साहित्य सृजन के द्वार को पाठकों हेतु खोलने तथा अनूदित साहित्य की उपलब्धता बढ़ानें की तथा युवा वर्गका अनुवाद की ओर ध्यानाकार्षण करने का प्रयास अतीव सराहनीय है। आपकी विज्ञान कथाओं के दो संग्रह ``अधूरा आविष्कार´´ (1960) तथा ``सत्य एवं मिथ्या´´ (1963) प्रकाशित हुए जिनकी अधिकांश विज्ञान कथाएं उस युग की वैज्ञानिक अवधारणा का संस्पर्श करने के हेतु चर्चित रहीं। आपके निर्देशन में 17 फें्रच एवं अंग्रेजी की विज्ञान कथाओं एवं उपन्यासों का अनुवास हिन्दी में प्रकाशित होना (इंडियन प्रेस-प्रयाग) उस समय एक चमत्कारिक उपलब्धि ही थी।
पुराणेतिहास से प्रभावित डॉ. ओम प्रकाश शर्मा का रचना संसार पुरा-कालीन भारतीय घटना क्रमों में रचना बसा है, चाहे वह गंगावतरण की चर्चा हो अथवा बुद्ध के बोधिसत्व प्राप्त करने की घटना का। इस प्रकार के प्रयास जहाँ विज्ञान कथाओं के माध्यम से मिथकीय-ऐतिहासिक बिम्बों को पुन: प्रतििष्ठत करना-अपेक्षाकृत कम हुआ है। कुछ अपवादों को छोड़कर जैसे ``आधुनिक ययातिं´´ और उसी संग्रह की अन्य कथाएं तथा ``वे चन्द्रमा से आए´´ की `अतीत की शिवा´ आदि13 कथाएं एवं `सूर्यग्रहण´ नामक संग्रह की `देव-भूमि´।14 नामक कथा इस श्रेणी में आती है।
डॉ. ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यास `मंगल यात्रा´, `जीवन और मानव´, `गांधीयुग पुराण´, `युग मानव´ आदि हैं।
इनकी रचनाओं पर पश्चिम के विज्ञान कथाकारों का परेाक्ष प्रभाव है परन्तु उनमें निहित भारतीय तत्व, डॉ. शर्मा की रचनाओं को एक विशिष्टा प्रदान करते हैं।
रमेश वर्मा (1930-1978) ने अतीव कुशलता से विज्ञान के विकसित हो रहे फलक को देखा था, समझा था और उन्हें अपनी विज्ञान कथाओं मे प्रतििष्ठत किया था। उन्होनें ``सिन्दूरी ग्रह की यात्रा´´ (1961) ``अंतरिक्ष के कीड़े´´ (1968) नामक विज्ञान कथाएं लिखीं थी जो अपनी तथ्यपरकता तथा लेखक के विज्ञान के रथ पर आसीन होकर मनुष्य के अन्तरिक्ष अन्वेषण प्रयास का सुरुचिपूर्ण रूप में प्रस्तुत करने का सार्थक प्रयास है।
डॉ. रमेश दत्त शर्मा (15 फरवरी 1936) की संपादकीय कला से, उनके विज्ञान कथाओं से उनके विज्ञान आलेखों से हम सभी परिचित हैं। डॉ. शर्मा की महत्वपूर्ण कथाएँ हैं, ``प्रयोगशाला में उगते प्राण´´, ``हरामानव´´ तथा ``हँसोड़ जीन´´।
पे्रमचन्द चंदोला ने हिन्दी विज्ञान नाटकों का सूत्र पात किया जिसमें ``बैक्टीरिया अदालत में´´ (1979), `गंदगी मल का मुकदमा´ तथा `नाइट्रोजन की पेशी´ बहुचर्चित हैं। उनके विज्ञान कथासंग्रह ``चीखती टपटप´´ और ``खामोश आहट´´ हैं।
विज्ञानकथा लेखक कैलाश शाह (1939-1978) एक प्रतिभा सम्पन्न विज्ञान कथाकार थे, जिनकी लेखनी का चमत्कार उनके विज्ञान कथा संग्रह ``मृत्युंजयी´´ (1976) में देखने को मिलता है। उन्होंने विज्ञानकथा लेखन को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया था। उनके चार वैज्ञानिक उपन्यास ``अन्तरिक्ष के पार´´, ``हरे दानवों का देश´´, ``मकड़ी का जाला´´ एवं ``मोआम् की यात्राएं´´ प्रकाशित हैं।
माया प्रसाद त्रिपाठी ने अति सहज स्वरूप में विज्ञान कथाएं लिखी है। उनके दो कथा संग्रह `आकाश की जोड़ी´ में 14 विज्ञान कथाएं संग्रहीत हैं तथा उनका संग्रह `साढ़े सात फुट की तीन औरतें´ में 13 विविध वर्णा विज्ञान कथाएं हैं।
उसी काल खंड में राजेश्वर गंगवार ने `बन्द शीशियों में दिमाग´ (1875), केसर ग्रह (1977) तथा सप्तवाहु (1884) नामक विज्ञान कथाओं का सृजन किया था।
देवेन्द्र मेवाड़ी (9 मार्च,1944) ने 1975 में विज्ञान कथा लेखन के क्षेत्र में प्रवेश किया। आपके दो विज्ञान कथा संग्रह प्रकाशित हैं। ``भविष्य´´ तथा ``कोख´´। `भविष्य´ नामक संग्रह में उनकी सभ्यता की खोज, एक और युद्ध, डॉ. गजानन के आविष्कार, गुडबाई मिस्टर खन्ना, खेम एन्थोनी की डायरी तथा भविष्य नामक 6 विज्ञान कथाएं संग्रहीत हैं। दूसरे कथा संग्रह `कोख´ में कोख, अलौकिक प्रेम, दिल्ली मेरी दिल्ली, पिता चूहे, अतीत में एक दिन तथा अन्तिम प्रवचन नाम सात विज्ञान कथाएं संकलित हैं। आजकल आप विज्ञान कथाओं के सृजन की अपेक्षा लोक विज्ञान लेखन में अधिक रुचि प्रदर्शित कर रहे हैं।
हिन्दी विज्ञान कथा वल्लरी को अपने श्रम, सृजन एवं विलक्षण मेधा के तोय से सिंचित करने वाले लेखकों में हरीश गोयल (4 नवम्बर, 1950) अग्रणीय हैं।
वे विज्ञान कथा लेखन में प्ररिम्भक रुचि लेते रहे थे। परन्तु उनका प्रथम चर्चित वैज्ञानिक उपन्यास ``कालजयी की यात्रा´´ का प्रकाशन 1984 में हो सका। यह भारतीय वैज्ञानिक के प्रिकार्नस तारामंडल के ग्रह विश्वकर्मा की यात्रा की गाथा है।
हरीश गोयल का विज्ञान कथा सृजन संसार व्यापक है। उनकी लेखनी से अब तक अनेकों विज्ञान कथा संग्रह सृजित हो चुके हैं। इनमें से कुछ प्रतिनिधि रचनाओं पर ही टिप्पणी कर पाना यहाँ सम्भव हो सकेगा।
हरीश गोयल द्वारा रचित विज्ञान कथा संग्रह ``तीसरी आंख´´ (1989) में तेरह कथाएं है।
एड्स एक समर भूमि, थकते डैने, अमानुष, कालयंत्र, मस्तिष्क ज्वर, तीसरी आंख, बायोरोटिका का सपना, उड़नपरी, गेस्टोपा, अन्तरिक्ष नरशिप तथा नाभकीय शीत। यह कथाएं क्रमानुसार चिकित्सा, प्रदूषण, प्रयोगशाला में तैयार भस्मासुर, रोबोटिक्स, पुन: चिकित्सा, नर शिशु की कामना और उससे उपजी भयावहता, रोबोटिक्स, उड़नतस्तरी तथा सेटेलाइटों के गिरने पर आधारित कथाएं हैं। इन सभी कथाओं में विज्ञान के तथ्य चमत्कृत कर देने वाली शैली में निवद्ध होकर कथाओं को रोचकता का पुट प्रदान करते हैं।
कथा संग्रह `अजनबी´ (2000) आठ विज्ञान कथाओं का संकलन है, जिसमें काल पात्र, अजनबी, जीवाणु बम, नर्सिंगहोम, हाइट, जलप्लावित कलकत्ता तथा तहलका नाम कथाएँ हैं। इन कथाओं में लेखक ने विडियों फोन, सुपर कम्प्यूटर, सौर कार, होलोग्राम नेटवक्र, हयूमन जिनोम प्रोजेक्ट तथा एम.आर.आई. का बार-बार प्रयोग करके बातने की कोशिश की है कि आने वाले युग में यह तकनीकें कितनी सामान्य व्यवहारिक चीजें हो जाएँगी।15
मानव क्लोन और तीसरा विश्व युद्ध : (2000) नामक विज्ञान कथा संग्रह में कुल आठ कहानियाँ संग्रहीत हैं। देशभक्त, इस संग्रह की मुख्य कथा, प्रेतात्मा, सूनी कोख, दुसरी सुधा, नकाबपोश, टेलीपैथी एवं सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी नामक कथाएं, लेखक के सृजन क्षमता का परिचायक तो हैं ही पर यह कथाएं विज्ञान के सृजनात्मक एवं विध्वंसात्मक पक्षों पर प्रचुरता से प्रकाश डालती हैं। कुछ कहानियों में ``जो सपपटबयानी है और क्लोनिंग विधि की जिस तरह व्याख्या की गई है उससे कहानी के बजाए उनमें निबंध के तत्व अधिक मुखर है´´।16
कथा संग्रह सभ्यता की खोज (2004), में आठ विज्ञान कथाएं संकलित हैं। मुख्यकथा, आसमान में सुराख, एलडोरेडो, मूर्ति बोल उठी मिनीमाटा, फिनिक्स, प्रत्यारोपण तथा मेकेनिकल एज्यूकेटर।
मिशन एक्स एक्स-5 का प्रारम्भ धरा से होता है और लक्ष्य और विशाल अंतरिक्ष में सभ्यता की खोज, वह भी फोटान चालित यान से। परिवार से दूर मानवीय त्रासों से जूझते अन्तरिक्षगामी अन्वेषक, कृष्ण विवर को पार करते अपने लक्ष्य पर पहुँचने में सफल हो जाते हैं - उनका विवरण इस कथा को रोचक बना देता है। ओजोन विवर क्षरण से संबद्ध हैं `आसमान में सूराख´ तो मिनीपाटा पारद प्रदूषण से। यद्यपि अत्याधिक अंग्रेजी के शब्द कथा संग्रह में प्रयुक्त हुए हैं पर इन शब्दों के कारण कथाओं की रोचकता न्यून नहीं होती और यह रचना जन-मानस को विज्ञान कथाओं के पठन-पाठन की ओर ले जाने तथा नवीन शब्दों के अथोZं से परचित होने का अवसर देगी।17
हरीश गोयल का पाँचवा आयाम (2004) नामक विज्ञान कथा संग्रह, अपने अंक में छ: विज्ञान कथाओं को समेटे है। वे हैं - मुख्य कथा, आप्रेशन थर्ड, काइन्ड, बारबाड़ी, पेस्टीसाइड, ग्रीन लैण्ड ममी तथा रोबो महिला।
``स्ट्रिंग थ्योरी एकादश आयामों की कल्पना करती है, इन आयामों में से पाँचवें आयाम की अवधारणा को, हिन्दी के प्रतििष्ठत विज्ञान कथाकार हरीश गोयल ने स्पष्ट, सुग्राह्य और रोचक बनाने का प्रयास किया है।........... इनमें स्थापित त्रिआयामों में दिक-काल को संयुक्त कर इस आयाम की अतीव बोधगम्य रूप में कल्पना की गयी है जो कथाकार की उर्वर मेधा का परिणाम है।18 इस संग्रह की यद्यपि सभी कथाएं रोचक हैं परन्तु जेनेटिक-इंजीनियरिंग की तकनीक का उपयोग करती ग्रीन-लैण्ड ममी एक प्रभावशाली कथा है।´´18
`कायान्तरण´ (2004) में, इसी नाम की मुख्य कथा किराये की कोख, ममत्व, विपाशन, एन्काउन्टर, प्रेम की प्यास, लेड-प्वाइजनिंग तथा अतिमानव नामक आठ कथाएं संग्रहीत हैं। जिनमें मुख्य कथा जंक डी.एन.ए. के अभिनव प्रयोग से `उल्फ मैन´ की कल्पना को साकार करता है ठीक इसी प्रकार जैसे भविष्य में सम्मोहन शक्ति का प्रयोग कर उसके उपयोग की ओर संकेत करती कथा `एन्काउन्टर´ में चित्रित है।19
भविष्य की विलक्षण आँखें (2004) में हरीश गोयल की आप्रेशन टेराफारमेशन, वेलेन्टाइन डे, जीन-कुण्डली, उड़नशील मानव, जहरीला धुआँ, एस्ट्राल पोर्ट तथा कमोडिटी भ्रूण नामक कथाएं संग्रहीत हैं। सभी कथाएं भविष्योन्मुखी हैं तथा हरीश गोयल का यह विज्ञान कथा संग्रह अनेक अथोZं में भविष्य दर्शन कराकर पाठक को भविष्य, के रहस्यों, तथ्यों, समाज पर पड़ते प्रभावों एवं रोमांचों से परिचय करता है, साथ ही लेखक की लेखनी चमत्कार प्रत्येक कथा के अन्त तक पाठकों को अपने प्रभाव क्षेत्र में बाँधे रहने में सक्षम है।´´20
आप्रेशन जेनेसिस (2004) में हरीश गोयल की सम्मोहन, काल जुदाई, तलाश, टेलीर्पोटेशन, मणिका तथा आप्रेशन जेनेसिस, नामक कथाएँ संग्रहीत हैं।
वैसे इस संग्रह की सभी कथाएं मनोग्राही हैं। परन्तु मुख्य कथा विशिष्टता युक्त है क्योंकि ``इस पृथ्वी पर धूमकेतुओं द्वारा लाये गये जीवन के सूक्ष्म कणों से इस धरा पर जीवन का प्रस्फुटन हुआ है, ऐसी वैज्ञानिकों की अवधारणा है। इसी तथ्य को आधार बनाकर संग्रह की मुख्यकथा आप्रेशन जेनेसिस में धूमकेतु पर आसीन होकर मानव द्वारा अपनी जैविक एवं वानस्पतिक सम्पदा का सुदूर जीवन-धारण करने वाले ग्रहों पर जीवन के प्रत्यारोपण के प्रयास को तथा उस सम्पदा के पुर्नदर्शन सत्यापन को यह कथा कुशलता से चित्रित करती है।´´21
एक अन्य विज्ञान कथा संग्रह आप्रेशन मार्स (2004) में मुख्य कथा, पालीथीन का कहर, अनिंद्य सुन्दरी, खजाना, टोकामन, डाउजिंग तथा क्लोन नामक कथाएँ संग्रहीत हैं। मुख्य कथा में पृथ्वी से 90 प्रकाशवर्ष दूर स्थित सिग्मा युग्म ए एवं बी के अधिनायक ब्लैक डेनिस की कथा है जो अपने को गैलेिक्टक सम्राट कहता है। इस ग्रह के विनाश और ध्वंस की कथा है आप्रेशन मार्स। अधिकांश कथाओं में भाषा सम्बन्धी त्रुटियाँ बहुतायत में विद्यमान हैं। एवं इस कथाओं में तथ्य की अस्पष्टता और भाषा शिल्प का अभाव खटकता है। आशा है कि इन सभी प्रकार की विसंगतियों का निराकरण आगामी संस्करण में संभव हो सकेगा।22
हरीश गोयल की ``रहस्यमयी ट्रैगिंल´´ में मुख्य कथा के उपरान्त पिघलता ग्लेशियर, आप्रेशन वेम्पायर, आग, काल-यात्रा, लेड-पाँइजनिंग, फिर धनेरी रात, धूमकेतु और प्रलय तथा और ममी जी उठी नाम रचनाएं संग्रहीत हैं। वैसे इस संग्रह की सभी कथाएं विशिष्टता युक्त हैं पर लेखक की उर्वर मेधा और उनकी गणितीय अभिरुचि इस कथा (रहस्यमयी ट्राइएंगिल) में देखने को मिलती है।23
हरीश गोयल के एक अन्य विज्ञान कथा संग्रह `येती रिटनर्स´ में मुख्य कथा, रिटोर्ट ईव, लोरोसिस, डायटम, डेजा-बू, मानव-बंदर, शोर, ग्रीनलैण्ड ममी तथा निर्देशक नामक कथाएँ हैं। इस संकलन में ग्रीन लैण्ड ममी को जो पाँचवाँ आयाम नामक कथा संग्रह में प्रकाशित है, संभवत: पुस्तक की पृष्ठ संख्या विस्तार को ध्यान में रखते हुए पुन: संकलित किया गया।
हरीश गोयल की अधिकांश कृतियों के भाँति ही इस संग्रह की कथाओं को रहस्य, रोमांच, पर्यावरण और अन्तरिक्ष की समस्याओं से संबद्ध कहा जा सकता है..........एक सुन्दर सिनेतारिका के क्लोन का कमाल इस रचना की अन्तिम कथा में देखा जा सकता है।24
हरीश गोयल के विज्ञान कथा संग्रहों - भविष्य की विलक्षण आँखे, पाँचवाँ आयाम, कायान्तरण तथा आप्रेशन जेनेसिस की समीक्षा सुभाषा लखेड़ा द्वारा भी की गई हैं।25
हरीश गोयल ने प्रचुर मात्रा में बाल-विज्ञान कथा साहित्य का सृजन किया है। उनके इस संदर्भ में रचित बाल उपान्यास है - किरणों का मायालोक, डूमा (1987), कम्पेक्स-39 (1987), परखनली डायनासार (1987), शुक्रलोक की राजकुमारी (1986), (राजस्थान साहित्य अकादमी से पुरस्कृत), अज्ञात ग्रह के ओर (1989), अंतरिक्ष परियाँ (2002), हरी चुनरी ओढ़े लोक में-यूरेनस ग्रह (2002), नीले धब्बे के लोक में नेपप्यून ग्रह (2002)।
हरीश गोयल के विज्ञान कथा रचना संसार की व्यापकता की पृष्ठभूमि निहित है विज्ञान कथाओं को साहित्य की विधाओं के समक्ष करने की कामना। आप पूर्ण सक्रियता एवं समर्पण की भावना से विज्ञान कथाओं के उन्नयन में रत हैं, अपने इस उद्देश्य की पूर्ति में लगे हैं। हरीश गोयल, देश की, हिन्दी की एक मात्र एवं प्रथम `विज्ञान कथा´ नामक पत्रिका, जो विज्ञान कथा लेखक समिति, फैजाबाद द्वारा विगत 5 वषाZें से प्रकाशित हो रही है, के उपसम्पादक हैं।
विज्ञान कथा संग्रह `एक और क्रौंच वध´ के लेखक डॉ. अरविन्द मिश्र (19 दिसम्बर, 1957) ने 1985 से विज्ञान कथाओं का प्रणयन प्रारम्भ किया। उनके एक मात्र इस संग्रह में कुल बारह विज्ञान कथाएं हैं। - गुरुदक्षिणा, धर्मपुत्र, देहदान, सम्मोहन, राज करेगा रोबोट, अछूत, अनुबन्ध, अन्तरिक्ष कोकिला, अन्तिम दृश्य, आप्रेशन, कामदमन तथा एक और क्रौंच वध जो डॉ. मिश्र को साहित्यिक अभिरुचि और वैज्ञानिक पक्षों के ज्ञान का प्रतीत है।26
इन्टरनेट प्रदत्त वैज्ञानिक सूचना, विज्ञान के त्वरित उपलब्ध ज्ञान की सूचनाओं की भागीरथी के प्रबल प्रवाह में फँस कर कुछ विज्ञान कथाकार विज्ञान लेखक बन गए हैं, डॉ. मिश्र इस प्रभाव से अछूते रहे हैं और वे इस विधा का उपयोग कर भारतीय विज्ञान कथा लेखकों के अवदान से वैश्विक स्तर के विज्ञान लेखकों से परिचित कराने में लगे हैं।
इसी संदर्भ में एक संकेत और, विज्ञान लेखन अपेक्षाकृत सहज विधा है परन्तु विज्ञान कथा लेखन का क्षेत्र दुरूह और कठिन है। यह सृजनात्मक क्षेत्र है जो लेखक के इस विधा के प्रति समर्पण की अपेक्षा करता है। यही कारण है कि विज्ञान लेखक यत्र-तत्र बहुतायत में दृष्टिगोचर होते हैं और विज्ञान कथा लेखक मात्र मुट्ठी भर लोग हैं जो इस विधा को तन्मयता से पोषित करने में लगें हैं।
यदि कथा वय और विज्ञान कथा के सृजन की यति भंग करके भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति फैजाबाद से प्रत्यक्ष और परोक्ष से जुड़े रचनाकारों की चर्चा की जाय तो उस स्थिति में सर्वप्रथम जाकिर अली रजनीश का नाम उभर का मानस में आता है।
जाकिर अली, रजनीश (1 जनवरी, 1975) का उपन्यास `गिनीपिग´ (1989) साहित्य और वैज्ञानिक तथ्यों का अपूर्व सिम्मश्रण है। इस उत्स जैव रसायनों द्वारा प्रेम के स्पन्दन की प्रतिक्रिया का प्रारम्भ है। इसी उपन्यास में ``क्या प्रेम वास्तव में हृदय की गहराईयों के बीच ही जन्मता है? कम से कम कहा तो ऐसा ही जाता है। संसार का समस्त साहित्य मनुष्यों के सभ्य समाज और प्रेमियों के अमर कथाएं बताती तो सही हैं ..... मस्तिष्क में ही प्रेम का अंकुर फूटता है, वहीं वह बढ़ता है और फिर शरीर के अंग-अंग में अमर बेल की तरह छा जाता है।´´27 विर्णत यह कथन प्रेम की उत्पत्ति, उत्तेजना तथा प्रेम के रसायनों के कार्यकलाप की ओर संकेत करता है जो आधुनिक विज्ञान के खोजों से सत्यापित हैं। इस समस्त जैविक रसायानों में मस्तिष्क के निचले भाग में प्रेरणा प्रेषित करने वाले रसायन डोपामीन के कारण मस्तिष्क में काउडेंट न्यूिक्लअस उभर आते हैं, और हो जाता है प्रेम की अनुभूतियों का प्रारम्भ। तथ्यत: प्रकृति चक्र में यह क्रिया प्रजनन कर अपनी प्रजाति को सुरक्षित रखने और उसे विस्तार देने का प्रयास है तथा उस चेष्टा का प्रथम सोपान है-प्रेम।
भाषा, शिल्प, मानव मनोभावों की अकुलाहट और मानसिक द्वन्द्व का, उन्हें जैव रसायनों के माध्यम से निरूपित करने का, स्त्री की व्यथा का, उसकी पीड़ा और दर्द का सुन्दर प्रभावशाली दस्तावेज है गिनीपिंग।
जाकिर अली की रचनाओं में साहित्य का पुट, भाषा शिल्प का प्राधान्य इस कारण स्पष्ट झलकता है क्योंकि उनकी पृष्ठभूमि में साहित्य निहित है, परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि उनकी रचनाओं में विज्ञान का पक्ष उभरता है। वास्तव में युवा विज्ञान कथाकार जाकिर अली का अपनी विज्ञान कथाओं में साहित्य और विज्ञान का उचित संपुट प्रस्तुत करने का प्रयास स्वागत योग्य है।
यही तथ्य उनके विज्ञान कथा संग्रह `विज्ञान कथाएं´ में स्पष्ट रूप में झलकता है जिसमें एक कहानी जरूरत, चुनौती कयामत आने वाली है, उड़ने वाला आदमी, तथा निर्णय नामक कथाएं संग्रहीत हैं।
जाकिर रजनीश ने कई बाल विज्ञान कथाएं भी लिखी हैं, जो प्रकाशित हुई हैं इनमें प्रमुख हैं-सपनों का राजा, अकरम का रोबोट, मैं स्कूल जाऊँगी आदि तथा उनके द्वारा संपादित ``प्रतिनिधि बाल विज्ञान कथाएं´´ प्रशंसा योग्य हैं।28
युवा विज्ञान कथाकार जीशान हैदर जैदी (18 अक्टूबर, 1973) विज्ञान कथाओं के प्रभावान स्वर हैं।
इनकी विज्ञान कथा में साहित्य एवं विज्ञान का मिश्रण हास्य और व्यंग से युक्त होकर, रचनाओं को विशिष्टता प्रदान करता है।29 जीशान हैदर की विज्ञान कथाओं की भाषा सरल और भाव स्पष्ट होते हुए भी उनकी कथाएं संदेश विहीन नहीं होती हैं, यही उनके विज्ञान कथा लेखन की प्रमुख विशेषता है। जीशान हैदर द्वारा लिखित कुछ विज्ञान कथाएं हैं-
अनजान पड़ोसी, कम्प्यूटर की मौत, कार का चक्कर (विज्ञान प्रगति), बदलता मतौसम, वैज्ञानिक राजकुमारी (विज्ञान) बौना मामला, स्वप्न मशीन, (दिल्ली ग्रामीण टाइम्स) मुर्दे की आवाज (स्वतंत्र भारत) एथलीट (नेहा) बचाने वाला, परिवर्तन (इलेक्ट्रानिकी आपके लिए), अकेला, जीवित ऊर्जा (रेडियो प्रसारण), जिस्म खोने के बाद, सौ साल बाद (भारतीय विज्ञान कथा लेखक अधिवेशन) एडहिसिव, अनजान मुजरिम, जेड वन रोशनी का वाहन, तस्वीर, ख्याली, संगीतकार तथा हास्य वैज्ञानिक उपन्यास ताबूत धारावाहिक रूप में त्रैमासिक पत्रिका विज्ञान कथा में प्रकाशित होती रही है। श्री जीशान हैदर का एक विज्ञान कथा संग्रह ``प्रोफेसर मंकी´´ भी अभी हाल में प्रकाशित हुआ है।29
स्विप्नल भारतीय (15 जून, 1977) की कई विज्ञान कथाएं प्रसंशा के योग्य हैं। कम्प्यूटर की प्रलयकारी शक्ति को प्रदर्शित करती उनकी कथा ``न्यू बी.आर. जी. चर्चित रही है। इंस्टैन्ट डेथ, अपराध विज्ञान पर आधारित है। विस्थापन और समय रेखा30 तथा एक लम्बी विज्ञान कथा `प्रतीक्षा´ जिसमें विज्ञान कथा के सभी गुण हैं, विज्ञान कथा में प्रकाशित हुई हैं।30 स्विप्नल की प्रारिम्भक रचनाएं विज्ञान प्रगति एवं आविष्कार के अंकों में प्रकाशित होती रहती थीं। इधर स्विप्नल भारतीय के सिनेमैटोग्राफी से सम्बन्धित विधाओं के अध्ययन में व्यस्त हो जाने के उपरान्त भी हिन्दी विज्ञान कथा सृजन क्षेत्र से आगे बढ़कर अंग्रेजी भाषा में साइंस फिक्शनों का प्रणयन प्रारम्भ कर दिया हैं उनकी अंग्रेजी की साइंस फिक्शन चर्चित हैं।
मनीष मोहन गोरे (15 जुलाई, 1981) विज्ञान कथा लेखन क्षेत्र को पूर्ण ऊर्जा से समृद्ध करने में लगे हैं। इनकी विज्ञान कथाएं रोचक और दीघZ कलेवर की न होने के कारण अपने पाठक को आकृष्ट करने में सक्षम सिद्ध हुई हैं। इनकी कथाओं की भाषा सरल स्पष्ट और विज्ञान तथ्य युक्त होती है। आशा है वय वृद्धि के साथ मनीष मोहन द्वारा लिखित विज्ञान कथाओं में रस और शिल्प का भी आवश्यकतानुसार समावेश होगा।
मनीष मोहन गोरे की कुछ प्रमुख विज्ञान कथाएं हैं-
सुपर कम्प्यूटर, जीवन की तलाश, स्वप्नोपहार, स्वर्गरथ, जीवन की पुर्नउत्पित्त, अत्याचारी वैज्ञानिक, क्लोन ऑफ एडिसन, पृथ्वी पुत्र, पुनर्जीवन, मंगल भवन, निराहारी मानव आदि विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
मनीष मोहन गोरे के विज्ञान कथा को प्रत्येक विधि द्वारा सिंचित करने के प्रयास का फल है, उनकी सराहनीय कृति `` विज्ञान कथा का सफर´´ तथा विज्ञान कथा संग्रह ``325 साल का आदमी´´31
अमित कुमार (30 जून, 1977) विज्ञान कथा लेखन क्षेत्र में कई वर्षों से सक्रिय हैं। उनकी विज्ञान कथाओं का संग्रह ``प्रतिद्वन्द्वी´´ संग्रह वर्ष 2005 में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह वर्ष की कथा ``अदृश्य मानव´´ रहस्य से ओत प्रोत कथा है। जिसमें प्रकाश के कणों के न दिखने का लाभ उठाकर अपराधी बैंक के लाकरों से धन-सम्पत्ति की चोरी करता है। नानों प्रौद्योगिकी के द्वारा मानव को पुर्नजन्म प्रदान करने की संभावनाओं के द्वार खटकाती कथा है ``और फिर मानव जीवित उठेगा।´´
वनस्पति जगत संवेदना मुक्त है, वृक्ष तथा पादप समुदाय भावनाओं को समझते हैं यह तथ्य वैज्ञानिकों को तथा अन्य प्रज्ञावन व्यक्तियों को ज्ञात है। पौधों की संवेदना पर आधारित एक हत्या के रहस्य का उद्घाटन करती तथा `साक्ष्य´ वास्तव में मनोग्राही, अपराध विज्ञान के क्षेत्र को विशिष्टता प्रदान करती विज्ञान कथा है।
वैसे इस संग्रह की अन्य विज्ञान कथाएं-रहस्यमयी, अवशेष, भयक्रांत सब कुछ ठीक-ठाक है, अप्रत्याशित, सोने की खोज से, वीरान धरती के वारिस, प्रतिद्वन्द्वी तथा प्रत्याशा पठनीय है, समीक्षत हैं।32
अब दो शब्द इस संग्रह के शिल्प पर । इनकी कथाओं में प्रत्युक्त कुछ शब्द अपरिष्कृत हैं, उनका प्रयोग खटकता है तथा यह भी संकेत देता है कि अमित कुमार विज्ञान के विधान से पूर्णत: परिचित नहीं हैं जिसके कारण उनकी कथाएँ तथ्यपरकता के निष्कर्ष पर खरी नहीं उतरती हैं, उनमें स्वैरता का आधिक्य है।
इरफान ह्यूमन (15 मई, 1968) बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति हैं जो विज्ञान संदेश संचार हेतु ``साइंस टाइम न्यूज एण्ड व्यूज´´ निकालते हैं और उसके साथ रोचक विज्ञान कथाएँ भी लिखते हैं। इनकी कथाएँ विज्ञान प्रगति, आविष्कार, विज्ञान आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इनकी कुछ प्रमुख विज्ञान कथाएँ हैं- आप को क्या हो गया है33, एक दिन डॉ. राबर्ट के साथ, मैं पहला साइबोर्ग, अदृश्य शक्ति आदि। आपकी विज्ञान कथाओं की भाषा सरल और कथानक कल्पनाशील युक्त होते हैं - कभी-कभी विज्ञान सम्मत तथ्यों पर उनकी कल्पनाशीलता अधिक छायी दिखती है। परन्तु इसके बाद भी कथाओं की रोचकता में न्यूनता दृष्टिगोचर नहीं होती है - वे सुग्राह्य बनी रहती है। श्री हृयूमन की पत्नी श्रीमती रूफिया भी यदाकदा विज्ञान कथाओं का प्रणयन करती हैं।
विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी (10 जून 1945) बाल विज्ञान कथाओं के कुशल चितेरे हैं। इसी कारण आप की विज्ञान-कथाएं बाल मनोरंजन पत्रिकाओं में अधिकतर प्रकाशित होती रहती हैं परन्तु जब आप विज्ञान कथाओं का प्रणयन करते है तो वे तथ्यपरक और विवरणात्मक जीवन्तता पूर्ण होती है।
आपकी कायापलट, हरीपीठ वाला आदमी, याददाश्त की चोरी, चांद की चोरी, ट्रांसजेनिक साइबोर्ग34 मुत का मोबाइल, अदृश्य हत्यारा, टाइम मशीन की चोरी, भावुक रोबोट, मंगल पर मंगल, परीरहस्य, गर्भकुण्ड का सौदा, मरण समारोह, गुरु की गिरत में आदि इसी कोटि की रचनाएं हैं।
``गाँव की नई आवाज´´ के संपादक विजय चितौरी (1953) हल्की-फुल्की व्यंग एवं हास्य का मिश्रण लिए हुए विज्ञान कथाओं के सृजन में भी सक्षम हैं। आपकी विज्ञान कथाओं की भाषा सरल-सुबोध होती है जिसमें विज्ञान का सम्पुट रहता हैं। इन तथ्यों से साक्षात्कार विजय चितौरी की बुद्धशरणं गच्छामि35 एवं भस्मासुर35 नामक कथाओं में किया जा सकता है।
लक्ष्मी नारायण कुशवाहा (15 जुलाई 1946) प्रभाव युक्त विज्ञान कथा लेखन में सिद्ध हस्त हैं परन्तु वे अपेक्षाकृत व्यस्ततावश कम विज्ञान कथाएँ लिखते हैं। आपकी कथाओं की भाषा स्पष्ट तथा तथ्य परक तो होती है। वह सुन्दर और उचित शब्द विन्यास युक्त होने के कारण पाठक को बाँधे रहने में सफल एवं प्रभावी होती है। ``आवाज की महत्ता´´ ``अपराधिनी माँ´´ एवं ``अकाट्य प्रमाण´´ आपकी कथाओं के कुछ सुन्दर उदाहरण हैं।36
विज्ञान के छात्र और पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण कमलेश श्रीवास्तव (29 मार्च, 1961) की कथा में संक्षिप्ततायुक्त स्पष्टता इनकी अपेक्षाकृत कम लिखी गयी विज्ञान कथाओं को विशिष्टता प्रदान करती है। विज्ञान तथ्य एवं कल्पना को प्रदर्शित करती ``नेताओं का क्लोन´´ ``चिप मैन´´ नामक कथाएं चर्चा योग्य हैं।37
मूलरूप से विज्ञान लेखक,राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित विज्ञान शिक्षक तथा विज्ञान प्रचार और प्रसार से जुड़े चन्द्र प्रकाश पटसारिया (29 मई 1950) विज्ञान कथा लेखन क्षेत्र के नवीन हस्ताक्षर हैं। आप के कथा लेखन का प्रारम्भ विज्ञान कथा पत्रिका में प्रकाशित ``विज्ञान देवता का अभिशाप´´ नामक कथा से हुआ है।38
नवोदित युवा विज्ञान कथा लेखिका सुश्री बुशरा अलवेरा (9 अक्टूबर, 1985) की कथाओं में विज्ञान और कल्पना की सराहनीय उड़ान देखने को मिलती है। इनकी कथाओं में भाषा और शब्द शिल्प का सांमजस्य रोचकता की सृष्टि कर पाठक को कथा के समाप्त होने तक बाँधे रखता है। सुश्री बुशरा की विज्ञान प्रगति में प्रकाशित कथा ``अन्तिम समाधान´´ तथा विज्ञान कथा में प्रकाशित ``जैकेट मैन´´ इन तथ्यों से युक्त है तथा बुशरा अलवेरा की विज्ञान कथा अन्तिम समाधान जनसंख्या विस्फोट का सुन्दर समाधान प्रस्तुत करती है।39 सुश्री बुशरा की ``उसने कहा´´ नामक विज्ञान कथा प्रकाशनाधीन है। इस युवा विज्ञान लेखिका से विज्ञान कथा साहित्य क्षेत्र में सृजन की नवीन संभावनाएं हैं।
आशीष गौरव कई वषोंZ से अच्छी विज्ञान कथाएं लिख रहे हैं जो अधिकतर विज्ञान प्रगति और अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इधर के कुछ वर्षों में विज्ञान प्रगति में प्रकाशित उनकी कथाएं टोटीपोटेन्ट ब्याय, ``आल माइटी साइंस ´´ फोटोसंथेटिक मैन´´ उनकी विशिष्ट शैली एवं कथा लेखन क्षमता की परिचायक है। कथा `` टोटी पोटेन्ट ब्याय´´ एक सुन्दर विज्ञान कथा है।40
राम जी लाल दास अनेक वर्षों से विज्ञान कथाएं लिखते आ रहे हैं आप की विज्ञान कथाएं अधिकांशत: विज्ञान प्रगति में प्रकाशित होती हैं। इनकी कथाओं में कल्पना शीलता और विज्ञानपुट तो होता ही है, उनमें रहस्य तत्व की उपस्थिति की प्रमुखता रहती है। दूसरे शब्दों में रहस्य अनेक अधिकाशत: विज्ञान कथाओं का केन्द्र बिन्दु बन कर उभरता है। अभी विज्ञान प्रगति के अंकों में प्रकाशित उनकी `जिब्राक्स का प्रेत´ जिस पर मेरी शेली के फ्रेन्केस्टीन का परोक्ष प्रभाव झलकता है तथा जो जिब्रैलिन आिक्सन का दुरुपयोग को दर्शाती कथा है। तथ्यत: रोचक होते हुए भी विज्ञान सम्मत नहीं लगती। परन्तु ``सोलो ग्राम´´, ``सोलट्रेशन और रिग्रेशन थिरैपी´´ तथा ``दु:स्वप्न´´ नामक कथाएं इस अपवाद से मुक्त हैं।41
डॉ. विष्णु दत्त शर्मा (4 अगस्त 1935) एक समर्पित विज्ञान लेखक हैं तथा आपकी लेखनी विज्ञान साहित्य की विभिन्न विधाओं को परिपूरित करती रही है। आपने प्रचुर मात्रा में विज्ञान साहित्य का सृजन किया है। जिसकी चर्चा यहाँ पर कर पाना संभव नहीं है। डॉ. शर्मा ने विज्ञान कथाएं और विज्ञान नाटक भी लिखे हैं तथा आप की संपादित ``हिन्दी में वैज्ञानिक नाटक´´ नामक कृति अभी प्रकाश में आई है। डॉ. शर्मा के एक अन्य नाटक `` वृक्षों की महापंचायत´´ विज्ञान कथा पत्रिका के पृष्ठों पर प्रकाशित हो रहा है। डॉ. शर्मा की भाषा, सुबोध, पत्रानुकूल रोचक एवं स्पष्ट होती है। आपकी भाषा में व्याकरण संबंधी त्रुटियाँ खटकती हैं। यही तथ्य शर्मा जी की विज्ञान कथाओं में भी परिलक्षित होता है।42
भारतीय पशु चिकित्सा संस्थान इज्जत नगर, बरेली में पशु-विकृति विज्ञान के प्रोफेसर, डॉ. रमेश सोमवंशी (17 जून, 1966) सिद्धहस्त विज्ञान लेखक एवं संपादक हैं। आपकी कुछ चर्चित पुस्तकें हैं- `` प्राचीन भारत में पशुपालन एवं पशुचिकित्सा विज्ञान´´, हिमालय के उपयोगी पशु, ``स्वीडेन में नौ माह´´, आदि। वास्तव में शोध लेखन एवं सम्पादन के मध्य अवकाश के क्षणों मेंं डॉ. सोमवंशी की लेखनी कथाओं के क्षेत्र में भी चली है। आपकी चर्चित विज्ञान कथा `` प्रयोगशाला में कैद वैज्ञानिक´´ तो तथ्यत: सुन्दर डायरी शैली की प्रभावी विज्ञान कथा है, जिसमें लेखक की तथ्य परकता, सजीव चित्रण क्षमता सधी हुई स्पष्ट, त्रुटिविहीन, विज्ञान सम्मत भाषा, शैली जिसके भीतर रोमाँच के क्षण बििम्बत होकर, इस कथा को विशिष्टता प्रदान करते हैं।43
एक भारतीय वैज्ञानिक भौतिकविद् प्रो. दौलत सिंह कोठारी के जीवन पर आधारित हिन्दी में प्रथम उपन्यास के लेखक, भौतिकविद् प्रो. धनराज चौधरी (1942) एक सिद्ध हस्त विज्ञान लेखक हैं, आपकी उस दक्षता के साथ के साथ विज्ञान कथाएं एवं विज्ञान नाटकों की सृष्टि भी करते हैं।
आपकी सधी सीधी भाषा जो राजस्थानी शब्दों का पुट लिए रहने के कारण एक प्रकार की नवीनता उत्पन्न करती है, कभी विज्ञानमय तथ्यों की ओझल नहीं होने देेती। उसमें एक प्रकार की सजीवता विद्यमान रहती है। ``बालू का गायन´´ इसी प्रकार की एक सुन्दर रचना है।44
डॉ. धनराज चौधरी द्वारा लिखित विज्ञान कथाएँ और उपन्यास इस प्रकार हैं- गोपाल मिस्त्री की मशीन बोल गई, प्रतिकार, बालू का गायन, अश्वमुखी की भारत पर उड़ान, तथापि (उपन्यास) पाताल पर कुँआ (लघु उपन्यास) बालू बोले अपनी बात (लघु उपन्यास) सौर तालाब (एकाँकी) डायनासोर का शिकार (एकाँकी), एवं कीर्ति पुरुष (उपन्यास)
श्रीमती कल्पना कुलश्रेष्ठ (11 मई, 1966) हस्तसिद्ध विज्ञान कथा लेखिका हैं जो इस विधा को प्रारम्भ से ही अपनी विविधवर्णा कथाओं के माध्यम से सिंचित करती रही हैं। आपकी विज्ञान कथाएँ समाचार पत्रों, विज्ञान प्रगति, आविष्कार एवं विज्ञान कथा पत्रिका आदि में प्रकाशित होती रहती हैं। इन कथाओं का एक संकलन ``उस सदी की बात´´ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। जिनमें कल्पना की रोचक शैली का प्रत्यक्षीकरण होता है।45
``उस सदी की बात´´ नामक विज्ञान कथा संग्रह में जीवित मशीन, विरासत, अपराधी, संभावित, मृत्यु पर विजय, उस सदी की बात, कुछ उलझे से रिश्ते, और राबी चला गया, लुप्त होती प्रजाति, नया नौकर, अनुत्तरित नाम विज्ञान कथाएं हैं। मुख्यत: कुछ कथाओं को छोड़कर अधिकांश कथाएँ मानव समाज, उसकी मानसिकता और तद्जनित समस्याओं के चतुदिZक घूमती फिरती दृष्टिगोचर होती हैं। इसी कारण से लेखिका ने इन्हें सामाजिक विज्ञान कथाएं (सोसाई फाई) नाम से उच्चारित किया है। तथ्यत: इस प्रकार की सोसाईफाई-सामाजिक विज्ञान कथाओं की यह प्रथम कृति है।45
कल्पना कुलश्रेष्ठ की परिमार्जित भाषा, जिसमें विज्ञान के तथ्य, व्यंग्य और हास्य का संपुट लेकर, एक विशेष प्रकार शैली की रचना करती है। पाठक को कथा के अन्त तक सम्मोहित किए रहती है, तथा लेखिका को एक विशिष्ट कथा शिल्पी के रूप में प्रस्तुत करती है।45 आशा है कल्पना कुलश्रेष्ठ की अन्य कथाएं भी संकलित होकर भविष्य में प्रकाशित होगीं।
यह प्रसन्नता का विषय है कि युगल कुमार कुलश्रेष्ठ भी अपनी सहधर्मिणी के पथ का अनुसरण करते हुए अपने कार्य व्यस्तता से बचे समय में विज्ञान कथा लेखन कर विज्ञान कथा को समृद्ध करने की दिशा में सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। आपकी कई विज्ञान कथाएं प्रकाशित हुई हैं।46
पूर्ण रूप से मसिजीवी, लेखनी और तूलिका के, कलम और पेिन्टग ब्रश के कौशल पूर्ण प्रयोग में माहिर, उसी के संबल से जीविकोपार्जन करने वाले, आइवर यूशिएल ने अपने नाम रवि लायडू को बदलकर आइवर यूशिएल के रूप में प्रचारित तो कर दिया पर रवि की रशिमयाँ बातिक कला से चलकर पत्र-पत्रिकाओं के विज्ञान कथा लेखन के माध्यम से उद्भासित होती रही हैं। आप पर केिन्द्रत विज्ञान परिषद् प्रयाग की मुख्य पत्रिका ``विज्ञान´´ का अंक आपके सृजन क्षेत्र के प्रति समर्पण की भावना का प्रतीक हैं।47 आप द्वारा लिखी गई विज्ञान कथाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। पर प्रचुर मात्रा में इनकी भाव प्रधान कथाओं को स्थान देने का श्रेय आविष्कार एवं विज्ञान प्रगति को जाता है।
आइवर यूशिएल की आविष्कार में प्रकाशित कुछ कथाओं की चर्चा उनके विज्ञान कथा लेखन के विभिन्न पहलुओं पर पर्याप्त प्रकाश डाल सकती है। ``वह अनचीहा अपरचित दोस्त ``, ऊर्जा पिण्ड की अवधारणा पर आधारित है, ``बीसवीं शताब्दी के मध्य एक प्लेटिनम जुबली´´ एक लम्बी प्रभावशाली विज्ञान कथा है। मानवीय संवेदनाओं का सशक्त चित्रण 21वीं शताबदी के `आगन्तुक´ में निहित है। `दो शताब्दी पीछे वापसी की चाहत´, लम्बी भावना प्रधान कथा है। `वह हयूमन अवींग´ इसी प्रकार की रचना है। इसी प्रकार विज्ञान प्रगति में प्रकाशित `आखिर वह रहस्य क्या था´ यूनीवर्सल स्टिकिंग बग्स की अवधारणा पर आधारित है जो सभी प्रकार की समस्त सूचनाएं, कहीं भी चिपका दिये जाने पर, संप्रेषित करने में सक्षम है, तो `मानव सभ्यता के अवशेष´´ एक ग्रह पर बच रहे एक मात्र मानव प्रतिनिधि के धरा दर्शन लालसा को प्रतिबििम्बत करती संवेदनाशील विज्ञान कथा है ``एनीमलेरियम´´ वन्य जीवों के मानव द्वारा किए जा रहे विनाश की कथा है। संक्षेप में आइवर यूशिएल की प्रत्येक कथा में एक तथ्य जो बार-बार उभर क सामने आता है। वह है मानव के संवेदनात्मक पक्ष का और दूसरा बिन्दु है मानव को तथ्यपरक वस्तु स्थिति को कभी दृष्टि से ओझल न होने देने की चेतावनी, जो प्रत्यक्ष और परोक्ष में उसके भविष्य से जुड़ी है। आप की कुछ कथाएं ``21वीं शताब्दी के अन्त तक´´ नामक विज्ञान कथा संग्रह में संकलित है।47
हिन्दी विज्ञान साहित्य सृजन के क्षेत्र में सुभाष लखेड़ा (26 अक्टूबर 1949) के नाम से सभी परिचित हैं। बहुआयामी लेखन में निष्णात लखेड़ा विज्ञान साहित्य के प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हैं। जिनकी लेखनी से विज्ञान लेखन का कोई क्षेत्र अछूता नहीं है।
सुभाष लखेड़ा की विज्ञान कथाएँ उनके लेखन की ही भाँति विविधता युक्त हैं। आपकी कथाओं में विज्ञान का पक्षअतीव सहजता से उभरता है और वह कथा का अविभाज्य अंग लगता है, अनाश्यक रूप में प्रविष्ट कराया गया नहीं हैं। इसी कारण इन कथाओं में बोिझलता नहीं होती और न वे उपदेशात्मक ही होती हैं। सीधी सरल भाषा आपकी विज्ञान कथाओं को, जो मानवीय पक्षों को उभारना, कुरेदना, प्रेरित करना नहीं भूलती, विशिष्टता प्रदान करती है। यही तथ्य उनकी ``अर्पिता की व्यथा की कथा´´48 तथा ``जीवन इस तरह बना मौत का कारण´´ नाम कथाओं में स्पष्टता से उभर कर सामने आता है।
वैसे तो सुभाष लखेड़ा ने अनेक कथाएँ लिखी हैं परन्तु उन सभी पर टिप्पणी करना यहाँ सम्भव नहीं है। इस कारण आविष्कार में प्रकाशित उनकी कुछ कथाओं की चर्चा ही यहाँ समीचीन होगा।
``मानव भ्रूणों की चोरी का रहस्य´´- पर्यावरणजन्य प्रभाव से संबद्ध है। `` एक और कुम्भकर्ण´´- जैविकी को दर्शाता है, तथा `स्मृतिदंश´ मानव मस्तिष्क की जटिलता और तदजनित घटना क्रमों को प्रदर्शित करती कथा है।48 इसी भाँति ``उड़न तश्तरियों के न आने का रहस्य´´-मानव के विविध मन:स्थितियों पर टिप्पणी करती है तो ``काश हमने रोबो न बनाये होते´´ क्या दिखाती है यह इस कथा को पढ़ने पर स्पष्ट हो जाता है, पर ``कोमलांगी अभी कुछ कहती´´ भी किसी प्रकार से न्यून विज्ञान कथा नहीं है।48 इस प्रकार सुभाष लखेड़ा की कथाओं में विविध मानवीय पक्षों केा चित्रित करने का प्रयास पाठक कथा के अन्त तक अनुभव करता रहता है। प्रसन्नता होगी यदि कभी आपकी कथाएँ संकलित होकर प्रकाशित हो सकें।
यदा कदा विज्ञान कथा लेखन करने वालों में डॉ. मनोज पटैरिया, डॉ. सुबोध महंती, प्रो. अरविन्द लाल भाटिया, विनीता सिंहल, राशिद जमाल, डॉ. प्रदीप कुमार मुखर्जी, श्रीमती रूपा पारिक, किसलय पंचोली आदि हैं जो प्रभावशाली विज्ञान कथाएँ लिखने में सक्षम हैं।
दूसरों की विज्ञान कथाओं पर टिप्पणियों करना अपेक्षाकृत सहज कर्म है। पर स्व आलोचना अथवा स्व परीक्षण अपेक्षा से अधिक दुष्कर होता है। अत: कुछ साहस जुटा कर अपनी प्रकाशित विज्ञान कथा की कृतियों के विषय में संक्षिप्त में कुछ कहना चाहूँगा।
वैज्ञानिक लघु कथाएँ49 का प्रभात प्रकाशन के उपक्रम प्रतिभा प्रतिष्ठान द्वारा 1989 में किया गया था। यह कथा संग्रह उस समय प्रकाशित हुआ था, जब साहित्य के क्षेत्र में लघुकथाओं का प्रचलन बहुत कम था। परन्तु इसके उपरान्त भी इस संग्रह की एक सौ चौंतीस लघुकथाओं का, इसके पाठकों में, विशेषकर नवयुवकों-किशारों ने खुले हृदय से स्वागत किया और इस संग्रह के तीन संस्करण प्रकाशित हुए। तथ्यत: यह लघुकथाएँ पर्यावरण प्रदूषण, स्वास्थ्य, अंधविश्वासों, मान्यताओं पर साधारण भाषा में सूचनाएँ प्रदान करती हैं तथा अपने पाठक को वहीं पर अपनी वानस्पतिक संपदा, कार्बन डेटिंग, कृत्रिम वषाZ तथा स्वेच्छा मृत्यु की अवधारणाा पर जिस पर अभी भी भारत के न्यायविद एकमत नहीं हैं, पर प्रकाश डालती हैं। इस संग्रह की कुछ लघुकथाएँ यथा `टेस्ट ट्यूब बेबी´ आदि भविष्य के घटनाक्रमों पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं।
आधुनिक विज्ञान कथाएँ का 1991 में प्रभात प्रकाशन के अनुक्रम ग्रन्थ अकादमी द्वारा किया गया था। यदि इस कृति के संस्करणों को ध्यान में रखा जाय तो उससे स्पष्ट हो जाता है कि इसका स्वागत पाठकों ने सहृदयता से किया था। इस पुस्तक में, सोलह विज्ञान कथाएँ संग्रहीत हैं, जिनमें `अतिमानव´ की पृष्ठभूमि में जर्मनी का हाइडिलबर्ग नगर है जिसके कैंसर शोध संस्थान में मेेरा दीघZकालीन प्रवास रहा है। कैंसरकारी एलाटोिक्सन के दुरुपयोग को, दर्शाती यह कथा, मानव मन में निहित कुण्ठाओं को उद्घाटित करने का प्रयास करती है।
``अफ्रीका का वाइरस´´ मेरे प्रिय नगर पेरिस में एड्सजनित समस्या और स्वत: एड्स को उत्पत्ति को दर्शाती यह कथा- एक प्रश्न चिन्ह के साथ अन्त होती है।
``नारंगी´´ नामक कथा का केन्द्र बिन्दु इजराइल का जाफा नामक नगर है जिसे हिब्रू भाषा में जाफो कहते हैं और उसकी विश्वविख्यात नारंरियों पर आधारित है यह कथा। इजराइल के नगर तेलअबीब, अपने ``वाइज मैन इंस्टीटयूट आफ साइंस´´ में प्रवास काल में आता जाता रहता था। इन नारंगी के पौधों की संरचना में परिवर्तन और उसके परिणामों को प्रदर्शित करती यह कथा भी पेरिस की विश्व प्रसिद्ध कुलवार-डू-मोपरनास जिसके एक -एक बिन्दु से मेरा परिचय है, के आस-पास घूमती सुखद रूप में समाप्त होती है।
ट्रोन्धाइम-नारवे के नारवेजियन इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नॉलाजी, जहाँ पर मैं शोध फेलो था तथा युवकों-युवतियों के कानिZवाल में भाग लिया था। उसी के आधार पर एक संस्था विशेष के लिए कार्य करने वाले व्यक्ति को रास्ते से हटाने की कथा है `युक्का´।
ईरान का तबरीज नामक उत्तरी नगर अपी सुन्दर स्त्रियों तथा सुस्वाद भोजन के लिए विख्यात है। उसी नगर की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर, रेडियोधमीZ तत्व के प्रयोग को रेखांकित करती यह कथा ``सूप´´। एजेन्टों विशेषकर इन्टलीजेंस एकत्र करते व्यक्तियों के निमूलन के प्रयास को प्रदर्शित करती है। यह तथ्य कथा लिखने के अवधि से लेकर आज तक अपने परिवर्तित रूपों समें सत्यापित होता चला आ रहा हैं।
तेल अबीब इजराइल का विश्वविख्यात नगर है। यहाँ पर स्थित है प्राकृतिक सुन्दरता युक्त डीजन ग्राफ स्ट्रीट। कथा ``विष कन्या´´ इजराइल के नगर रिहोबाथ के वाइजमान इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस- जहाँ पर कुछ समय तक मैं रह चुका था, को केन्द्र में रख कर तथा ``आनको जीन´´ कैंसरकारी जीनों के डिटेक्शन किट को विकसित करने की जटिलताओं और उसके विकास हेतु संरचनाओं को गायब करने के तथा विष रेसिन का प्रयोग कर उसके विकासकर्ता का प्राणान्त कर देने की कथा है।
तथ्यत: औद्योगिक रूप से विकसित देशों में इस प्रकार की विकसित की जा रही प्रौद्योगिकी एवं तकनीकों को गायब करा देना, चुराकर प्राप्त कर लेना अति सामान्य कार्य है। भारत में भी यह प्रक्रिया विकसित हो चुकी है। इसी तथ्य की ओर यह कथा इंगित करती है। दूसरे शब्दों में प्रौद्योगिकी के विकास की कड़ियों से जुड़ी यह भविष्य की समस्या का दिग्दर्शन कराती कथा है।
मंगल के उपग्रह फोबोस से सम्बन्ध रखने वाली पेरिस प्रवास काल में लिखी गयी इसी नाम की कथा है ``फोबोस´´ ।
पेरिस प्रवास काल के दौरान, उसकी सुन्दरता तथा जीवन मृत्यु के मध्य जूझती हुई मानसिक परिस्थितियों, घृणा ओर दुराग्रह ग्रस्त मानसिकता का परोक्ष में दर्शन करती कथा ``एक्स रे´´ है।
तबरीन-इरान प्रवास के काल में एक निम्फोमैनियक स्त्री की चर्चा लोगों में थी उसी को आधार बनाकर, विकृत मानसिकता के तथ्य को प्रदर्शित करती ``दोल्में´´ नामक कथा है। जिसमें विषाक्त मशरूम ऐमानिटा फैलायडस का दोल्में में प्रयोग कर, सब कुछ जान चुके अपने पति अली आगा को खानम सेदेही ने, सदा के लिए अपने मार्ग से हटा देती है। आज के परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार की घटनाएँ, हमारे समाज में बढ़ी हैं। अतएव यह कथा समाज-सचेतक कथा है।
समाचार पत्रों में ईष्र्यावश प्रेमी अथवा प्रेमिका एक दूसरे अंधेरे में रखकर एड्स का विषाणु दे सकते हैं और कभी-कभी इस विषाणु का प्रयोग अधिक व्यापकरूप में भी लोगों को प्रभावित करने, अर्थव्यवस्था को अस्तव्यस्त करने हेतु भी किया जा कसता है। ईरान के परिप्रेक्ष्य में कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के हेतु डॉ. सूसन इसी प्रकार के कार्य को स्वरूप देने आई थीं। वह कार्य क्या था यह तो ``एड्स की छाया´´ में को पढ़कर ही समझा जा सकता था।
इजराइल के नगर तेल अवीब के प्रमुख पथ डीजन गाफ स्ट्रीट के एक रेस्ट्राँ की घटना से निसृत हुई एक एडिक्ट की कथा है ``नशालु´´।
नारवे के नगर ट्रोन्थाइम के समुद्र तट से फेरी अथवा छोटे से स्टीमर द्वारा बीस मिनट के मध्य समुद्र में स्थिति मुंक होल्मेन की वसीलिका अथवा चर्च तक पहुँचा जा सकता है। मध्य युग में यह स्थान साधना का, पदारियों की एकान्त साधना का स्थल था। इसी की चर्चा है अर्धरात्रि के देश नारवे के संबंध में। इसी स्थल पर ईष्र्या कुण्ठा वशीभूत होकर हािल्दस का प्रेमी साधना कक्ष में, मुंंक होल्मेन के साधना कक्ष में, उसकी हत्या कर देता है। तथ्यों का स्पष्टीकरण डी.एन.ए. फिंगर प्रिटिंग तकनीक द्वारा होताहै। ``आधी रात का सूर्य´´ नामक कथा में डी.एन.ए. फिंगर प्रििन्टग तकनीक की प्रथम बार चर्चा, इस कथा को इस दृष्टि से भविष्य दर्शन की कथा बनाती है, क्योंकि यह विधि कानूनी मान्यता प्राप्त करने के काफी समय पहले लिखी गई थी।
नस्ल भेद, वर्ण-भेद, ``एपार्थिड´´, कुण्ठा से ग्रस्त, अस्वस्थ मानसिकता का व्यक्ति कौन सा जघन्य कार्य नहीं कर सकता यह इस कथा को पढ़ कर जाना जा सकता है। यह कथा आज भी अपने विविध रूपों मेंं विदेशों में घटित होती रहती है।
पत्रकार सोफिया द्वारा गुरुत्वाकर्षण विहीनता की स्थिति में, उस पर नियंत्रण करने वाली औषधि की चर्चा, उससे संबंधित षड्यन्त्रों और हत्या से जुड़ी भविष्य में इस प्रकार के औषधियों के प्रयोग की ओर संकेत करती कथा है ``आक्सीजन मास्क´´।
विमान और परामानव नामक कथाएं स्वेरतापूर्ण कथा लेखन का सुखद अन्त हैं।
प्रसिद्ध विज्ञान कथाकार हरीश गोयल ने इन कथाओं के विषय में अपने आलेख में चर्चा करते हुए लिखा है-
``सभी कथाओं में नये विषय लिए गए हैंं। ये विषय अब तक अछूते रहे हैं। विज्ञान कथाओं में इनका पहली बार प्रयोग हुआ। इन कथाओं में बड़े रहस्यमय ढंग से गुित्थयाँ उजागर होती हैं। इनमें इन कथाओं में गहरी मानवीय संवेदनाएं होती हैं´´।9
एक दीघZ अन्तराल के उपरान्त ``सूर्यग्रहण´´14 का प्रकाशन हुआ। इस संग्रह में काका की शैली में लिखी कथा स्टेथस्कोप, अपने देश की कन्या के जन्म से संबद्ध विकृत मानसिकता, जिसके परिणामस्वरूप कन्या भू्रण की हत्या होती है, को केन्द्र बिन्दु में रखकर लिखी गई सचेकतक कथा है। सूर्य ग्रहण सामाजिक अंधविश्वास, अविवेक, अवैज्ञानिकता पर कटाक्ष करती कथा है तो स्वैरता पूरित उड़न तश्तरियों की अवधारणा में संयुक्त कथा है आपरेशन । विचार तरंगों की भविष्य आने में, वाले समय में, प्रभावी भूमिका की ओर संकेत करती कथा है। ध्यान मशीन। यहाँ पर यहसंकेत करना पर्याप्त होगा कि ध्यान तरंगों-भाव तरंगों पर विश्व के अनेक वैज्ञानिक भौतिकविद् कार्य कर रहे हैं।
वैज्ञानिक प्रयोगों में जीव हत्या, बलिदान और पशुओं मे तद्जनि पीड़ा, यंत्रणा और पशु-प्रयोगों को बन्द करने की अवधारणा को प्रोत्साहन देने हेतु लिखी गई कथाएं हैं चिम्पैंजी, गोश्त और मूक प्रश्न।
पुनर्जन्म, मेरे मित्र और रोबो नामक कथाएं अंध विश्वास और सामाजिक जड़ताओं पर कुठारघात करने की दृष्टि से लिखी गई हैें।
पूर्ण रूपेण अपंग और मृत्यु शैय्या पर पड़े व्यक्ति और इसके कारण उसकी अर्धांगिनी की व्यथा को वििम्बत करती है मृत्यु का अधिकार। यह कथा विज्ञान से अधिक समाज की मानसिकता की तरफ संकेत करती है, इस समस्या के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की ओर इशारा करती है।
अरे यह क्या? और जईद गायब हो गया नामक कथाएँ फैन्टासी स्वैरता युक्त कथाएं हैं। पिरामिड और बहुपुत्रवती मानव क्लोन तथा इन विट्रो फर्टीलाइजेशन तकनीक से संबद्ध होते हुए भी प्रौद्योगिकी जन्य प्रभावों, दुष्प्रभावों को चित्रित करती है। गुलाबबाड़ी में नेवले पर सर्प विष का प्रभाव क्यों नहीं पड़ता के तथ्य को स्पष्ट करने का प्रयास है तथा डॉ. ताण्डव जहाँ पर भारतीय दर्शन को वििम्बत करती हैं वहीं पर यह कथा वर्टिकल-टेक आफ वायुयानों की चर्चा करती है जो अब वास्तविक हो गए हैं।
भारहीनता डॉ. रजनी और स्वाद तथा काश मैं पूर्ण मानव होता नामक कथाएं विज्ञान के अनैतिक पक्ष को प्रदर्शित करती हैं।
दान और देवभूमि नामक कथाएं परोक्ष में हाइडिलवर्ग (जरमनी) और तबरीज (ईरान) से जुड़ी हैं। पृष्ठभूमि पौराणिक है पर पात्र आधुनिक हैं, घटनाक्रम आधुनिक हैं, और एक अन्त सुखद तो दूसरे का अन्त दुखान्त हैं। इन दोनों कथाओं को सर्वाध्िाक सराहना मिली है। दान इन्द्र प्रस्थ भारती में प्रथम बार प्रकाशित हुई थी।
सूर्य ग्रहण विज्ञान कथा संग्रह बहु समीक्षित है।9,51,52,53,54
आधुनिक ययाति नामक विज्ञान कथा संग्रह की समीक्षा करते हुए प्रसिद्ध विज्ञान लेखक एवं विज्ञान कथाकार सुभाष लखेड़ा ने लिखा है´´। ``इस संकलन की सभी कहानियाँ जिस शैली में सामाने आई हैं वह पाठकों को भाव विभोर करने में सक्षम हैं। सभ्ीा कहानियां साहित्यिक मापदण्डों की कसौटी पर खरी उतरते हुए यह विश्वास पैदा करतीं हैं कि विज्ञान कथाओं को इस ढंग से भी लिखा जा सकता है, जिससे उन्हें साहित्यिक कृति का दर्जा देने में किसी को आपत्ति न हो´´।55
इस कथा संग्रह में वेगा, समस्थानिक अपराजित, दूसरा नहुष, आधुनिक ययाति, जिससे मानवता बची रहे, डॉ. आलबर्तो वापस न आ सके, लौहभक्षी, फोबस विखण्डित हो गया, उस दुघZटना के बाद, उस पल के पूर्व, खून, अन्तिम जलपल्वन तथा अन्तरिक्ष दस्यु नामक विज्ञान कथाएं हैं।
इन कथाओं के विषय में, समीक्षा करते हुए हरीश गोयल का विचार हैं `` आधुनिक ययाति एक स्तरीय व सफल विज्ञान कथा विज्ञान कथा संग्रह है। कथा साहित्य के सामान्य पाठकों को भी यह कथाएं निश्चय की रोचक लगेंगी, क्योंकि इनके चरित्र, कथानक, विचार सूत्र एडवेंचरस हैं, खोेजपरकता के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं से जुड़े हैं।56
इसी संग्रह की कथा ``डॉ. अलबर्ताे वापस न आ सके के विषय में लिखते हुए विज्ञान साहित्य आलोचक डॉ. वीरेन्द्र सिंह के शब्द- ``यह कथा संवाद और चरित्र के अन्योन्य संबंध पर विकसित होती है, जो मुझो रचनात्मक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण लगी है। जो विज्ञान के तकनीकी पक्ष को, उसके तिस्लिम की भी प्रस्तुत करती है, ध्यान देने योग्य है।57 कुछ इसी प्रकार हैं, इन कथाओं के विषय में, विचार डॉ. रचना भारतीय के भी।58
वे चन्द्रमा से आये13 नामक कथा संग्रह में कुल आठ कहानियाँ क्रम में हैं-
वे चन्द्रमा से आये, रक्त लेख, अतीत की शिवा, प्वाइंट सालमा, अवसाद का अन्त, एक और सभ्यता का विनाश, चाय दार्जिलिंग की, ओह ! वह हरा आकाश।
इस संग्रह की विज्ञान कथाओं के विषय में समीक्षा करते हुए सुभाष लखेड़ा का कथन ``कोरी कल्पना की उड़ान पर आधारित कथा को कभी भी विज्ञान कथा का दर्जा नही दिया जा सकता है। इस तथ्य से समीक्षित पुस्त वे चंद्रमा से आये के लिेखक डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय अच्छी तरह से परिचित हैं। यही वजह है कि उनकी विज्ञान कथाओं का स्वरूप चाहे जैसा हो, वे वर्तमान वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान के वर्हिनिवेशन के आधार पर लिखी गई हैं, और विज्ञान कथाओं के लिए परिभाषाओं को संतुष्ट करती हैं।59
``इसी कृति के विषय में चर्चा करते हुए प्रसिद्ध विज्ञान कथाकार हरीश गोयल के विचार हैं´´ विज्ञान कथाएं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की उपज हैं जो इसे साहित्यिक कथाओं से तनिक भिन्न करती हैं। ये कथाएं खोज परक होती हैं, अन्वेषणात्मक होती है। .............. यह कथाएं साथ ही आक्रषक रोमांच से ओतप्रोत होती हैं। विज्ञान कथा के उपयुZक्त सभी तत्व हम डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय की ``वे चन्द्रमा से आये´´ नामक पुस्तक में पाते हैं।´´60
अपने दीघZकालीन विदेश प्रवास और उन देशों की रीतियों, रिवाजों, खान-पान, आचरण, व्यवहार, सामाजिक समस्याएं, परिधानों और वर्जनाओं से परिचित होने के कारण मेरी अधिकांश विज्ञान कथाओं के पात्र देशकाल को अनुरूप व्यवहार करते हैं। यदि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह कथाएं भौगोलिक सीमा में न बंधकर- वैश्विक स्तर को प्रतिबिम्बत करती हैं। इनकी विविधता का उत्स उनकी वैश्विकता है।
मुझे भारत की अन्य भाषाओं में रचित विज्ञान कथाओं को कम पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ है। परन्तु हिन्दी की विज्ञान कथाओं ने एक लम्बी यात्रा की है और अब तक इनकी विकास यात्रा अबाधित है। वास्तव में भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति, फैजाबाद की स्थापना के उपरान्त विज्ञान कथा को एक मंच ही नहीं मिला वरन् उनके लेखन की त्वरा का अनुमान पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही, विज्ञान कथाओं की संख्या और स्तरीयता को देख कर लगाया जा सकता है। बहुत कुछ योगदान इस दिशा में समिति की मुख्य और हिन्दी की प्रथम त्रैमासिक पत्रिका ``विज्ञान कथा´´ का भी है।
इधर सतत् प्रकाशित हो रहे विज्ञान कथा संग्रहों के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि शब्द, भाषा, शिल्प, तथ्यपरकता आदि को दृष्टि से लिखी जा रही विज्ञान कथाएं सराहनीय हैं परन्तु समय है हम भारतीयों में, निहित अन्तर्मुखी प्रवृत्ति को त्याग कर विज्ञान कथा के को पाठक वर्ग के विस्तार का, विज्ञान कथा को जनसामान्य की दृष्टि में लाने का। इस हेतु विज्ञान कथाओं में लालित्य, रस, भाव, अलंकार, नाटकीयता, उत्सुकता एवं मनोरंजन के साथ समयोचित ``बोल्डनेस´´ की आवश्यकता है, जिससे विज्ञान कथाएं साहित्यिक कथाओं के समकक्ष हो सकेंं समयानुगामिनी हो सकेें।

1. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : हिन्दी कहानी और विज्ञान कथा, सिमिटती दूरियाँ, प्रसारण माध्यामों के लिए विज्ञान गल्प टेलीविजन, पृ. 119, भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति-फैजाबाद 2002.
2. मनीष मोहन गोरे, डॉ. अरविन्द मिश्र : विज्ञान कथा का सफर : मंजुली प्रकाशन पो. बा. नं. 5019, 1/67, आर. के. पुरम्, नई दिल्ली 22, पृ. 39.
3. सर जगदीश चन्द्र बसु : पालातक-तूफान, विज्ञान कथा (त्रैमासिक) वर्ष 1, अंक जून-अगस्त 2003 पृ. 3।
4. साहित्याचार्य पं. अिम्बका दत्त व्यास : आश्चर्य वृत्तान्त : विज्ञान कथा (त्रैमासिक) वर्ष 4, अक 15.2006 पृ.5
5. बाबू केशव प्रसाद सिंह : `चन्द्र लोक की यात्रा´ सरस्वती भाग 1, संख्या-6, 1900
6. सत्यदेव परिव्राजक : आश्चर्यजनक घण्टी : विज्ञान कथा (त्रैमासिक) वर्ष 1, अंक 3 मार्च-मई 2003 (संक्षिप्त) एवं पुन: वर्ष 5 अंक 17 सितम्बर-नवम्बर 2006 पृ. 2
7. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : आधुनिक ययाति, ग्रन्थ विकास, सी 37 बर्फखाना, राजपाक्र, आदर्शनगर जयपुर पृ. 50
8. डॉ. मीनूपुरी : विज्ञान कथाएं और कपोल कल्पनाएं विज्ञान कथा (त्रैमासिक) वर्ष 4 अंक 16 जून-अगस्त 2006 पृ. 11
9. हरीश गोयल : हिन्दी में विज्ञान कथाओं का समृद्ध होता इतिहास : मधुमती, दिसम्बर 2004 पृ. 26
10. डॉ. मीनूपुरी : वैज्ञानिक समीक्षा पर आधारित हिन्दी उपान्यास, शोध प्रबंध, राजस्थान, विश्वविद्यालय जयपुर 2002
11. डॉ. शुभकार कपूर : आचार्य चतुरसेन का कथा साहित्य, पृ. 214, 1965
12. डॉ. सम्पूर्णानन्द : आलोचना, वैज्ञानिक कथा साहित्य, पृ. 189
13. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : वे चन्द्रमा से आये : ग्रन्थ विकास, सी 37 बर्फ खाना, आदर्श नगर,राजापाक्र, जयपुर-4
14. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : सूर्य ग्रहण : ग्रन्थ विकास, सी 37, राज पाक्र, बर्फ खाना आदर्श नगर , जयपुर-4
15. डॉ. शिवगोपाल मिश्र : अजनबी : विज्ञान, वर्ष 86, अंक 1, अप्रैल 2000 पृ. 29
16. डॉ. शिवगोपाल मिश्र : मानव क्लोन और तीसरा विश्व युद्ध : विज्ञान, वर्ष 86, अंक 7 अक्टूबर पृ. 31
17. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : सभ्यता की खोज( विज्ञान प्रगति मई, 2005 पृ. 33 ,
18. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : पाँचवां आयाम:, विज्ञान कथा वर्ष 3 अक 10, 2005 पृ. 35
19. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : कायान्तरण, : विज्ञान कथा, वर्ष 3, अंक 10, 2005 पृ. 3
20. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : भविष्य की विलक्षण आँखें, विज्ञान कथा वर्ष 3, अंक 12, 2005, पृ. 26
21. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : आप्रेशन जेनेसिस, विज्ञान कथा, वर्ष 3, अंक 12, 2005 पृ. 28
22. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : आप्रेशन मार्स, विज्ञान कथा, वर्ष 4, अंक 15, 2006 पृ. 26
23. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : रहस्यमयी ड्राइएंगिल, विज्ञान कथा, वर्ष 4, अंक 15, 2006, पृ. 22
24. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : येती रिटनर्स, विज्ञान कथा, वर्ष 4, अंक 15, 2006, पृ. 24
25. सुभाष लखेड़ा : आविष्कार, वर्ष 35, सितम्बर, 2005 पृ. 36.
26. डॉ. अरविन्द मिश्र : एक और क्रौंच बध: भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति, फैजाबाद 1998
27. जाकिर अली रजनीश : गिनीपिग, गायत्री इन्टर प्राइजेज, एफ 3128 राजाजीपुरम् लखनऊ 226017, 1998
28. जाकिर अली रजनीश : विज्ञान कथाएँ, राष्ट्रीय प्रकाशन मंदिर, अमीनाबाद, लखनऊ तथा प्रतिनिधि बाल विज्ञान कथाएं, विद्यार्थी प्रकाशन लखनऊ, 2002
29. जीशान हैदर जैदी : ताबूत : हास्य विज्ञान कथा, विज्ञान कथा, वर्ष 5 अंक 18 (अन्तिम) 2005 पृ. 23, प्रोफेसर मंकी, क्वीन्स पब्लिकेशन, 390/54 रुस्तम नगर, नई पानी की टंकी, कश्मीरी मोहल्ला लखनऊ- 226003, 2006
30. स्विप्नल भारतीय : समय रेखा : विज्ञान कथा, वष्ज्ञZ 1, 2002 पृ. 26 तथा विज्ञान कथा, वर्ष 2, अंक 5, 2003, पृ. 29
31. मनीष मोहन गोरे : ``325 साल का आदमी´´, भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति-फैजाबाद-224001, 2006
32. अमित कुमार : प्रतिद्वन्द्वी, मधुर प्रकाशन, सी-13ए, सेक्टर 20, नोयडा, गौतमबुद्ध नगर-2013301, 2005 विज्ञान कथा, वर्ष 3, अंक 2005 पृ. 26
33. इरफान हृयूमन : आप को क्या हो गया है, विज्ञान कथा वर्ष 2, अंक 5, 2003 पृ. 4
34. विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी : ट्राँसजेनिक साइबोZग, विज्ञान कथा वर्ष 1 अंक 2, 2002 पृ. 6
35. विजय चितौरी : बुद्ध शरणं गच्छमि: संचार माध्यमों के लिए विज्ञान कथा, सं. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय एवं डॉ. अरविन्द मिश्र, भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति फैजाबाद 2000, पृ. 74, भस्मासुर, विज्ञान कथा, वर्ष 5, अंक 18, 2006 पृ. 18
36. लक्ष्मीनारायण कुशवाहा : अपराधिनी माँ, विज्ञान कथा, वर्ष 3, अंक 10, 2005 पृ. 28 अकाटय प्रमाण विज्ञान कथा, वर्ष 5, अंक 12, 2006 पृ. 25
37. कमलेश श्रीवास्तव : चिप मैन, विज्ञान कथा, वर्ष 3, अंक 11, पृ. 20 जल संकट, विज्ञान कथा वर्ष 3, अंक 10, 2005 पृ. 19
38. चन्द्र प्रकाश पटसारिया : विज्ञान देवता का अभिशाप, विज्ञान कथा, वर्ष 3, अंक 12, पृ. 22 कम्प्यूटर घड़ी की करामात, विज्ञान कथा, वर्ष 5 अंक, 17, पृ. 30
39. बुशरा अलवेरा : अन्तिम समाधान, विज्ञान प्रगति (शीघ्र प्रकाशय) जैकेट मैन, विज्ञान कथा, वष्ज्ञZ 4, पृ. 16
40. आशीष गौरव : टोटीपोटेन्ट ब्याय, प्रगति, अंक 11, 2004 पृ. 25
41. राम जी लाल दास : दु:स्वप्न, विज्ञान प्रगति, अंक 9, 2006, पृ. 33
42. डॉ. विष्णु दत्त शर्मा : हिन्दी में वैज्ञानिक नाटक, शोध प्रकाशन अकादमी, 5/48 वैशाली गाजियाबाद, 2006, वृक्षों की महापंचायत, विज्ञान कथा, वर्ष 4 अंक 15, 2006 पृ. 11
43. डॉ. रमेश सोमवंशी : प्रयोगशाला में कैद वैज्ञानिक, विज्ञान गरिमा सिंधु संयुक्त अंक 16, 1994, दूसरे ग्रह का प्राणी, विज्ञान कथा, वर्ष 2, अंक 9, 2004 पृ. 14, टी. सी. 15, विज्ञान कथा, वर्ष 1, अंक 3, 2003, पृ. 13
44. डॉ. धनराज चौधरी : कीर्ति पुरुष, (उपन्यास), वाणी प्रकाशन, दिल्ली 2002, बालू का गायन, विज्ञान कथा, वर्ष 2, अंक 4, 2003 पृ. 15.
45. कल्पना कुलश्रेष्ठ : उस सदी की बात, अमर सत्य प्रकाशन किताब घर का उपक्रम प्रीति बिहार-दिल्ली-92, विज्ञान कथा, वर्ष 4, अंक 14, 2006 पृ. 26 (समीक्षा)
46. युगल कुमार कुलश्रेष्ठ : विक्षिप्त, इलेक्ट्रानिकी आप के लिए, अंक 142, वर्ष 19, 2006, पृ. 26
47. आईवर यूशिएल : विज्ञान, वर्ष 92, अंक 8, 2006 पृ. 21
21वीं शताब्दी के अन्त तक, किताब घर 24/ 48,55, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002, 2006
48. सुभाष लखेड़ा : अर्पिता की व्यथा की कथा, वर्ष 2 अंक 9, 2004, पृ. 5 जीवन की तरह बना मौत का कारण, विज्ञान कथा, वष्ज्ञZ 4, अंक 15, 2006 पृ. 16, मानव भू्रणों की चोरी का रहस्य, आविष्कार, वर्ष 36, अंक 7, 2006, पृ. 26 एक और कुम्भकर्ण, आविष्कार, वर्ष 34, अंक 5, 221, स्मृति दंश, आविष्कार, वर्ष 32, अंक 12, 2002, पृ. 553, उड़न तश्तरियों के न आने का रहस्य, आविष्कार वर्ष 31, अंक 8, 2001, पृ. 359, काश हमने रोबों न बनाये होते, आविष्कार, वर्ष 30, अंक 12, 2000, पृ. 450 कोमलांगी अभी कुछ कहती कि आविष्कार वर्ष 33, अंक 11, 2003, पृ. 502।
49. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : वैज्ञानिक लघु कथाएँ- प्रतिभा प्रतिष्ठान, 2685, कूचा दखिनीराय, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
50. डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय : आधुनिक विज्ञान कथाएं, ग्रन्थ अकादमी, 1686 पुराना दरियागंज नई दिल्ली-110002
51. सुभाष लखेड़ा : सूर्य ग्रहण आविष्कार, वर्ष 34 अंक 4, 2004, पृ. 175
52. डॉ. शोभा सत्यदेव : सत्य के सूर्य का भ्रम के ग्रहण से मोक्ष, सूर्य ग्रहण, विज्ञान कथा, वर्ष अंक 9, 2004, पृ. 23
53. डॉ. रचना भारतीय : नारी स्वातं×य अभिव्यक्ति से युक्त विज्ञान कथा संग्रह सूर्य ग्रहण विज्ञान कथा, वर्ष 2, अंक 9, 2004, पृ. 25.
54. हरीश गोयल : सूर्य ग्रहण, विज्ञान कथा, वर्ष 2, अंक 6, 2004, पृ. 16.
55. सुभाष लखेड़ा : आधुनिक यथाति, आविष्कार, वर्ष 34, अंक 10, 2004 पृ.
56. हरीश गोयल : संभाव्य अंतरिक्ष यात्रा वृत्तान्तों एवं पुरा कथा विम्बों युक्त रोचक संग्रह आधुनिक ययाति और मिथकीय प्रसंग, विज्ञान कथा, वर्ष 2, अंक 2004 पृ. 28
57. डॉ. वीरेन्द्र सिंह : भावी अन्तरिक्ष यात्रा और मिथकीय प्रसंग, विज्ञान कथा, वर्ष 2, अंक 5, 2004, पृ. 26
58. डॉ. रचना भारतीय : प्रेम, बलिदान अतीत की गौरव गाथा है आधुनिक ययाति, विज्ञान कथा, वर्ष 2, अंक 5, 2004, पृ. 26.
59. सुभाष लखेड़ा : वे चन्द्रमा से आये, आविष्कार, वर्ष 26 अंक 10 अक्टूबर 2006,पृ. 2006, पृ. 32.
60. हरीश गोयल : संभाव्य नव प्रौद्योगिकी एवं वैज्ञानिकों तथ्यों से युक्त रोचक विज्ञान कथा संग्रह, वे चन्द्रमा से आये, विज्ञान कथा, वर्ष 5, अंक 11, 2006, पृ. 21

परिसर कोठी काके बाबू
देवकाली मार्ग
फैजाबाद-224001

Saturday, February 21, 2009

मेरे विज्ञान कथा संग्रह


वैज्ञानिक लघु कथाएँ -139 लघु कथाएँ, (1989)
आधुनिक विज्ञान कथाएँ- (आदि मानव, अफ्रीका का वाइरस, नारंगी, यूक्का, सूर्य, विष कन्या, फोबोस , एक्स-रे, दोल्मे, एडस की छाया में, नशालु, आधीारात का सूर्य, एपार्थिड, आक्सीजन मास्क, विमान, परामानव) (1991)
सूर्य ग्रहण- (स्टेथेसकोप, सूर्य ग्रहण, आप्रेशन, ध्यान मशीन, चिन्पैजी, मेरे मित्र, गोश्त, पुर्नजन्म, देवभूमि, दान, डॉ. ताण्डव, मूक प्रश्न, मृत्यु का अधिकार, रोबो, अरे जईद, गायब, बहुपुत्रवनी, गुलाब, बाड़ी , भारहीनता, डॉ. रजनी और स्वाद, काश मैं पूर्ण मानव होता, पिरामिड) (2004)
आधुनिक ययाति- (वेगा, समस्थानिक, अपराजित, दूसरा नहुष, आधुनिक ययाति, जिससे मानवता बची रहे। डॉ अलवर्ती वापस न आ सके, लौह भक्ष्ी, फोबस विखंडित हो गया, उस दुर्घटना के बाद, उस पल के पूर्व, खून, अन्तिम जलप्लवन, अंतरिक्ष दस्यु) (2004)
वे चन्द्रमा से आये - (वे चन्द्रमा से आये, रक्त लेख, अतीत की शिवा, प्वाइंट सालमा, अवसाद, का अन्त, एक और सभ्यता का विनाश, चाय-दार्जिलिंग की, ओह! वह हरा आकाश), (2005)
वैज्ञानिक पुरा कथाएँ- (संजीवनी, द्रोणाचार्य, विंध्यगिरि, वृत्ताासुर, नृसिंह, त्रिपुर-अन्तरिक्ष में तीन नगर, मनचालित विमान-सौभ, चल प्रतीक-ध्रुव, राजा मांधाता, राजा त्रिशुंक, खंड प्रलय, महर्षि च्यवन, ब्रह्मात्र, राजा ककुध्न, समुद्र मंथन, शिखंडी, विशल्या, राजा ययाति, महर्षि भृगु का चमत्कार, हिरण्यनगर, अश्विद्वय, श्वेत वराह, अवतार, सत्यवान, गणेश, कौरव, नारद, परीक्षित, दधीच, सुदर्शन चक्र, राजा बेन, अहल्या, इला, असुर त्रित, महर्षि दध्यड़, महर्षि अरुणि, उद्दालक, उपमन्य, और्व-अग्नि, वामन अवतार, सरमा, उर्वशी) (2009),
एक और शिखण्डी - (अतिज्ञान, मोहभंग, सत्य का अभास, प्रतिरोध, नो मैन-काईड, माफिया, चेतना, तरंगे, आकर्षण, परिवर्तन, चमत्कार, एक और शिखण्डी) शीघ्र प्रकाश्य।
उत्तारी आकाश गंगा में - रोबोटों का पुनर्जागरण, कंज्वाइन्ट तोकतामिश कागान (खान) के ई. भाव बिम्ब, उल्का पिण्ड, क्वा-हेक, इसी धरा पर, प्रवृत्तिा परिवर्तन, चीत्कारें, भ्रण और वह डायरी, पराबो वाइरस, उत्तारी आकाश, गंगा में) शीघ्र प्रकाश्य,।
खाँसी-विज्ञान कथा संग्रह- (खाँसी, अनुभूतियाँ, तीन घण्टे, उलझन, उंगलियाँ, वह फिर आ गई, पुर्नसृजन, प्रकृति, अनुत्तारित प्रश्न, वे-लोग, पर्यावरण नियत्रण) शीघ्र प्रकाश्य।
उडन तश्तरियाँ और विज्ञान कथाएँ- (उड़न तश्तरियों से सबंधित विविध विवरण तथा संग्रहीत विज्ञान कथाएँ), शीघ्र प्रकाश्य
वैज्ञानिक युग में अंधविश्वासों का चक्र व्यूह-(जिलेटिन का कैप्स्यूल, मंगल दोष, सफेद दाग, माता का प्रकोप, प्रेत भस्म हो गया, भू-समाधि, देवी आ गयी, नाग पंचमी, करवा चौथ, पोलिओ ड्राप, सेतुबंध, ग्लोबल वार्मिग, आकाश में सीढ़ी, हीरे का तारा, कटा पीपल उठ गया, मिनी कामधेनु, योगिराज, मिरगी, सर्प मणि,डायरिया-कालीथान, मलमास और मानसून, नाड़ी दोष, बिच्छू मंत्र, चन्दा मामा, सेतुबंध, साँप के कान नेवला, दाँत और दपर्ण, टोना, जीभ में त्रिशलू, मंत्र और पीलिया, चमत्कारी-दण्ड, दरवेशों का करिश्मा, बहा खून रुक गया, पढ़ लिया संदेश उसने, चावल पक गया ठण्डे पानी में, घेरती मक्खियां, मोमबती जल उठी, मंत्र शक्ति से अग्नि उत्पन्न हो गई।
रोमांचक विज्ञान कथाएँ- (लखनऊ, मदाम आमू, वह ग्रह, अमीरअली योगिराज), शीघ्र प्रकाश्य,
इन संग्रहों की अधिकांश विज्ञान कथाएँ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं जैसे- जनमोर्चा, सेन्टीनल, दिवस जीवन, दैनिक चेतना, लोकमत समाचार, लोकतेज, दैनिक नवज्योति, विज्ञानगंगा, विज्ञान गरिमा सिंधु, विज्ञान प्रगति, आविष्कार, अवध अर्चना, बाल वाटिका, इन्द्रप्रस्थ-भारती, प्रगति, वैज्ञानिक, नेहा, इलेक्ट्रानिकी, आप के लिए, खनन भारती, नवनीत, साहित्य-अमृत में प्रकाशित हुयी हैं और होती रहती हैं।

Sunday, January 11, 2009