Saturday, March 14, 2009

विज्ञान कथा

विज्ञान कथा : परिभाषा
मानवीय संवेदनाओं, अभिव्यक्तियों, मानवीय संवेगों, संकल्पों को,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्मिलित करती, कल्पना, रोमांच एवं रहस्य के आवरण से अपनी शब्द काया को अवगुिण्ठत किये, भविष्यमुखी कथा-विज्ञान कथा है।

प्रच्छन्न भारतीय विज्ञान-कथाएँ
हम आप सभी भागवत पुराण में विर्णत राजा उत्तानपाद एवं ध्रुव की कथा से परिचित हैं। भारतीय ज्योतिष के चरमोत्कर्ष के समय मे नक्षत्रों के मानवीकरण के प्रयास द्वारा ज्योतिष के ज्ञान को, जन-सामान्य तक, संप्रषित कर ने हेतु इन कथाओं की रचना की गई थी। भगवत-पुराण में विर्णत है कि राजा ध्रुव ने छत्तीस हजार वषोंZ तक राज्य किया था। ज्योतिष का प्रत्येक क्षात्र यह जानता है कि धु्रव नक्षत्र एक राशि पर तीन हजार वर्ष तक रहता है। इस प्रकार बारह राशियों पर वह छत्तीस हजार वर्षो तक रहता है, यही इस घु्रव नक्षत्र का राज्य काल होता है। धु्रव की भूमि नाम्नी पत्नी से दो पुत्र `वत्सर´ एवं `कल्प´ हुये थे। हम इस तथ्य से परिचित है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा एक वर्ष में पूरा करती है- यह अवधि वत्सर कहलाती है। इसी शब्द में संवत शब्द संलिप्त होकर संवत्सर बन गया। सूर्य ब्रह्माण्ड के केन्द्र की परिक्रमा एक कल्प में करता है- यही `कल्प´ भूमि का दूसरा पुत्र है। इसी प्रकार की कथा राजा त्रिशंकु की है, जो निश्चित रूप से भास्कराचार्य (द्वितीय) के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के संज्ञान के उपरान्त रची गयी होगी। आज के अनुमानत: दस हजार वर्ष पूर्व पृथ्वी लघु हिमयुग का दंश झेल रही थी। समय के साथ वातावरण में परिवर्तन हुआ ,धरा का तापक्रम बढ़ा, परन्तु सरितायें हिमाच्छादित रहीं। इसी को, इसी जल को हिम से मुक्त कराने की कथा है-इन्द्र द्वारा वृत्त का वध। यह अलंकारित कथा महाभारत के समय तक कथोपकथन के प्रवाह मेें, ढ़लकर, परिवर्तित कलेवर धारण कर लोकरंजन कर रही है। उपयुZक्त सभी कथाएँ, जो प्राचीन काल में वैज्ञानिक तथ्यों को अपने आँचल में छिपाये, लोक रंजन का माध्यम थीं तथ्यत: प्रच्छन्न विज्ञान कथाएँ हैं। इनमें विगत के घटना क्रमों की चर्चा तो है, परन्तु आगत के घटनाक्रम पर, उससे जुडे़ विविध संदर्भो पर चर्चा नहीं है। मानवीय संवेदनाओं, अभिव्यक्तियों,मानवीय संवेगों, संकल्पों को,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्मिलत करती, कल्पना, रोमांच एवं रहस्य के आवरण से अपनी शब्द काया को अवगुिण्ठत किये, भविष्यमुखी कथा-विज्ञान कथा है। वास्तव में विज्ञान कथा आने वाले कल को उद्भाषित करती कथा है- मानव के प्रौद्योगिकी, तकनीकों, के द्वारा प्रेरित होने प्रभावित होेने की कथा है।

भारत की प्रथम विज्ञान कथा
ऋग्वेद विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है। यह विश्व की धरोहर है। इसके अनेक मंडलों में प्रथम-मंडल सबसे अधिक प्राचीन है। इस मंडल में मानवीय कल्पना के आयामों का दर्शन होता है तथा वहीं पर इस मंडल के अलंकारित मंत्रो मेेंं विज्ञान एवं प्राद्योगिकी के विकास का भी झलक विद्यमान है। प्रारम्भ में मानव सरिताओं के जल पर आश्रित था। कालान्तर में मानवीय विस्तार के परिणाम स्वरूप वह सरिताओं से दूर कृषि आदि कार्यो के संपादन हेतु बसने लगा। सरिताओं से जल लाना कठिन था, इस कारण उसने घरती का खनन कर,उपलब्ध जल से अपना कार्य चलाना प्रारम्भ किया होगा। इस प्रकार के खनित कूप वषाZ के आने पर किनारे पर एकत्र खुदी हुई मिटृी से भर जाते रहें होगें। इस कारण सुदृढ़ कूप के निर्माण की आवश्यकताअोंं ने यज्ञ-वेदिका निर्माण की आवश्यकता ने, उसे मिटृी की पकी हुई ईटों को बनाने के लिए प्ररित किया होगा। ईंटों को पकाने की तकनीक मानव द्वारा पहिया अथवा चक्र बनाने की तकनीक से कम महत्वपूर्ण नहीं थी। पकी हुई ईटों के प्रयोग ने यज्ञ हेतु निर्माण की जाने वाली वेदिकाओं को स्थायित्व ही नहीं प्रदान किया वरना कूपों को सृदृढ़ता प्रदान करने का प्रारम्भ किया। स्वाभाविक है कि गहरे और सुदृढ़ कूप के निर्माण कार्य मेें तकनीक समस्या शिल्पियों के सम्मुख आई होगी। इस की झंकार निम्न अलंकारिक मंत्र में स्पष्ट सुनायी देती है-त्रित: कूपे वहितो देवान्हवात ऊतये। तच्छुश्राव बृहस्पति: कृण्वन्न हूरणादुरू वित्तमें अस्य रोदसी।। -ऋग्वेद: मं. 1 सू.105 मंत्र. 11 त्रित नामक कूप निर्माता शिल्पी निर्माण काल में गोल दिख रहे कूप में, कुएँ में फँस गया। उसने अपने उद्धार के लिए देवगुरु बृहस्पति का आह्वान किया, पुकारा। गणितज्ञ देवगुरु बृहस्पति ने कूप का पूर्णरूपेण गोल न होना जानकर, उसकी दीवारों को पूर्ण रूपेण लम्बवत करने, कूप को गोल करने का संकेत देकर, शिल्पी त्रित का उद्धार किया। तथ्यत: यदि कूप की परिधि एवं व्यास का अनुपात 22/7 से न्यूनाधिक होगा, तो वृत अशुद्ध होगा तथा निर्माण पूर्ण रूपेण स्थिर नहीं रह सकेगा, गिर जायेगा, यह सर्वविदित गणितीय तथ्य है। यह छोटी सी, महत्त्वपूर्ण कथा, भविष्य में कूप निर्माण की तकनीक को ही नहीं बताती, वरन इस कथा से स्पष्ट होता है कि भविष्य में कूपों के निर्माण में इस प्रकार की त्रुटि संशोधन कर, शिल्पियों ने पुराकाल में सुदृढ़ कूपों के निर्माण का शंखनाद किया होगा। इतना ही नहीं यह भविष्यमुखी-भारत की प्रथम विज्ञान कथा, पाई के मान को वैदिक कालीन गणितज्ञों को ज्ञात होने का भी संकेत देती है।

1 comment:

Unknown said...

Dear sir,

Just saw your blog, Its great :-)

Swapnil